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चक्रवत्तों का राज्य विस्तार]
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बद्ध राजा उनके समक्ष नतमस्तक होकर उसके आदेश को अंगीकार करते हैं। सोलह हजार म्लेच्छ राजा भी उसके सेवक होते हैं ।
सोलह हजार देव भी चक्रवर्ती के प्रकृष्ट पुण्य से प्रेरित होकर उसके आज्ञाकारी होते हैं। इनमें से चौदह हजार देव चौदह रत्नों की रक्षा करते हैं और दो हजार उनके दोनों ओर खड़े रहते हैं।
__ चक्रवर्ती की सेना बहुत विराट होती है। उसमें चौरासी लाख हाथी, चौरासी लाख घोड़े, चौरासी लाख रथ और ९६००००००० पैदल सैनिक होते हैं ।
उसके साम्राज्य में ७२००० बड़े-बड़े नगर, ३२००० जनपद, ९६०००००० ग्राम, ९९००० द्रोणमुख, ४८००० पट्टन, २४००० मडंब, २०००० प्राकर, १६००० खेट, १४००० संवाह आदि सम्मिलित होते हैं।
चक्रवर्ती की नौ निधियाँ उनकी असाधारण सम्पत्ति नौ निधि और चौदह रत्न विशेषतः उल्लेखनीय हैं । निधि का अर्थ निधान या भंडार है । चक्रवर्ती की यह नौ निधियां सदैव समृद्ध रहती हैं । इनका परिचय इस प्रकार है
१. नैसर्प निधि--नवीन ग्रामों का निर्माण करना, पुरानों का जीर्णोद्धार करना और सेना के लिए मार्ग, शिविर, पुल आदि का निर्माण इस निधि से होता है।
२. पाण्डुकनिधि-धान्य एवं बीजों की उत्पत्ति, नाप, तौल के साधन, वस्तुनिष्पादन की सामग्री प्रस्तुत करना आदि इसका काम है।
३. पिंगलनिधि-स्त्रियों, पुरुषों, हस्तियों एवं अश्वों आदि के आभूषणों की व्यवस्था करना।
४. सर्वरत्ननिधि–सात एकेन्द्रिय और सात पंचेन्द्रिय श्रेष्ठरत्नों की उत्पत्ति इस निधि से होती है।
५. महापद्मनिधि-रंगीन और श्वेत, सब तरह के वस्त्रों की उत्पत्ति और निष्पत्ति का कारण यह निधि है।
६. कालनिधि–अतीत और अनागत के तीन-तीन वर्षों के शुभाशुभ का ज्ञान, सौ प्रकार के शिल्प, प्रजा के लिए हितकर सुरक्षा, कृषि और वाणिज्य कर्म कालनिधि से प्राप्त होते हैं ।
___७. महाकालनिधि-लोहे, सोने, चाँदी आदि के प्राकर, मणि, मुक्ता, स्फटिक और प्रवाल की उत्पत्ति इससे होती है।
___८. माणवकनिधि–योद्धाओं, कवचों और आयुधों की उत्पत्ति, सर्व प्रकार की युद्धनीति एवं दण्डनीति की व्यवस्था इस निधि से होती है।
___९. शंखमहानिधि-नृत्यविधि, नाटकविधि, चार प्रकार के काव्यों एवं सभी प्रकार के वाद्यों की प्राप्ति का कारण ।
इन नौ निधियों के अधिष्ठाता नौ देव होते हैं। यहाँ निधि और उसके अधिष्ठाता देव में अभेद-विवक्षा है । अतएव जिस निधि से जिस वस्तु की प्राप्ति कही गई है, वह उस निधि के अधिष्ठायक देव से समझना चाहिए।