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६. संकल्पी - मानसिक संकल्प से उत्पन्न होने वाला ।
७. बाधना पदानाम् — पद अर्थात् संयम स्थानों को बाधित करने वाला, अथवा 'बाधना प्रजानाम् ' - प्रजा अर्थात् सर्वसाधारण को पीडित - दुःखी करने वाला ।
८. दर्प - शरीर और इन्द्रियों के दर्प- अधिक पुष्ट होने से उत्पन्न होने वाला ।
[प्रश्नव्याकरणसूत्र : भु. १, अ. ४
९. मूढता - अज्ञानता - अविवेक - हिताहित के विवेक को नष्ट करने वाला या विवेक को भुला देने वाला अथवा मोहनीय कर्म के उदय से उत्पन्न होने वाला ।
१०. मनः संक्षोभ - मानसिक क्षोभ से उत्पन्न होने वाला या मन में क्षोभ - उद्वेग उत्पन्न करने वाला - मन को चलायमान बना देने वाला ।
११. अनिग्रह - विषयों में प्रवृत्त होते हुए मन का निग्रह न करना अथवा मनोनिग्रह न करने से उत्पन्न होने वाला |
१२. विग्रह - लड़ाई-झगड़ा - क्लेश उत्पन्न करने वाला अथवा विपरीत ग्रह - प्राग्रह - अभिनिवेश उत्पन्न होने वाला ।
१३. विघात - प्रात्मा के गुणों का घातक ।
१४. विभंग - संयम आदि सद्गुणों को भंग करने वाला ।
१५. विभ्रम-भ्रम का उत्पादक अर्थात् श्रहित में हित की बुद्धि उत्पन्न करने वाला । १६. अधर्म - पाप का कारण ।
१७. अशीलता - शील का घातक, सदाचरण का विरोधी ।
१८. ग्रामधर्मतप्ति - इन्द्रियों के विषय शब्दादि काम-भोगों की गवेषणा का कारण ।
१९. गति - रतिक्रीडा करना - सम्भोग करना ।
२०. रागचिन्ता - नर-नारी के शृङ्गार, हाव-भाव, विलास आदि के चिन्तन से उत्पन्न होने
वाला ।
२१. कामभोगमार — काम - भोगों में होने वाली अत्यन्त आसक्ति से होने वाली मृत्यु
का कारण ।
२२. वैर - वैर-विरोध का हेतु ।
२३. रहस्यम् – एकान्त में किया जाने वाला कृत्य ।
२४. गुह्य - लुक - छिपकर किया जाने वाला या छिपाने योग्य कर्म ।
२५. बहुमान - संसारी जीवों द्वारा बहुत मान्य ।
२६. ब्रह्मचर्य विघ्न — ब्रह्मचर्यपालन में विघ्नकारी ।
२७. व्यापत्ति - श्रात्मा के स्वाभाविक गुणों का विनाशक ।
२८. विराधना – सम्यक् चारित्र की विराधना करने वाला ।
२९. प्रसंग - प्रासक्ति का कारण ।
३०. कामगुण - कामवासना का कार्य ।
विवेचन -- ब्रह्मचर्य के ये तीस गुणनिष्पन्न नाम हैं । इन नामों पर गम्भीरता से विचार किया जाय तो स्पष्ट हो जाएगा कि इनमें ब्रह्मचर्य के कारणों का, उसके कारण होने वाली हानियों का तथा उसके स्वरूप का स्पष्ट दिग्दर्शन कराया गया है ।
अब्रह्मचर्यसेवन का मूल मन में उत्पन्न होने वाला एक विशेष प्रकार का विकार है । अतएव