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## Third Study: The Chulani Pita
[123]
When that man said it for the second time, the third time, this thought arose in my mind: "Oh! This wicked, low-minded man has committed such heinous sins. He brought my eldest son, my middle son, and my youngest son from home, and he killed them, staining my body with their flesh and blood. Now he wants to bring you (the mother) from home and kill you in front of me. Therefore, it is best that I capture this man." Thinking this, I rose to capture him, but he flew into the sky. My outstretched hands grasped only a pillar. I cried out loudly.
## Atonement by the Chulani Pita
[146]
Then the noble Sāthavāhi, the Shramanopāsaka Chulani Pita, spoke to her: "Son! There was no man who brought your eldest son from home and killed him in front of you. There was no man who brought your youngest son from home and killed him in front of you. This was a divine affliction for you. Therefore, you saw this terrible sight. Now your vows, rules, and observances are broken, shattered. Therefore, son! You should criticize this conduct of breaking your vows, (perform Pratikramaṇa - return to a pure inner state, condemn this tendency, reproach yourself - feel inner remorse and purify the faults arising from it, be ready for appropriate atonement) and accept the Tapas Karma for it."
## Discussion
The passage mentions that the Shramanopāsaka Chulani Pita's three sons were killed in front of her by a sword and boiled in a cauldron of boiling water. This was not a real event, but a divine affliction. This is explained in the case of Kāmadeva.
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तृतीय अध्ययन : चुलनीपिता ]
[ १२३
तुब्भे वि य णं इच्छइ साओ गिहाओ नीणेत्ता ममं अग्गओ घाएत्तए, तं सेयं खलु ममं एवं पुरिसं गिहित्तए त्ति कट्टु उद्घाइए । से वि य आगासे उप्पइए, मए वि य खंभे आसाइए, महा महया सद्देणं कोलाहले कए ।
उस पुरुष द्वारा दूसरी बार, तीसरी बार यों कहे जाने पर मेरे मन में ऐसा विचार आया, अरे ! इस अधम, नीचबुद्धि पुरूष ने ऐसे नीचतापूर्ण पापकर्म किए, मेरे ज्येष्ठ पुत्र को, मंझले पुत्र को और छोटे पुत्र को घर से ले आया, उनकी हत्या को, उसके मांस और रक्त से मेरे शरीर को सींचा। अब तुमको भी ( माता को भी) घर से लाकर मेरे सामने मार डालना चाहता है । इसलिए अच्छा यही है, मैं इस पुरूष को पकड़ लूं । यों विचार कर मैं उसे पकड़ने के लिए उठा, इतने में वह आकाश में उड़ गया । उसे पकड़ने को फैलाये हुए मेरे हाथों में खम्भा आ गया। मैंने जोर-जोर से शोर किया। चुलनीपिता द्वारा प्रायश्चित्त
१४६. तए णं सा भद्दा सत्थवाही चुलणीपियं समणोवासयं एवं बयासी - नो खलु केइ पुरिसे तव जाव (जेट्ठपुत्तं साओ गिहाओ नीणेइ, नीणेत्ता तब अग्गओ घाएइ, नो खलु hs पुरिसे तव मज्झिमं पुत्तं साओ गिहाओ नीणेइ, नीणेत्ता तव अग्गओ घाएइ, तो खलु केइ पुरिसे तव ) कणीयसं पुत्तं साओ गिहाओ नीणेइ, नीणेत्ता तव अग्गओ घाएइ, एस णं केइ पुरिसे तव उवसग्गं करेइ, एस णं तुमे विदरिसणे दिट्ठे । तं गं तुमं इयाणिं भग्ग-व्वए भग्ग - नियमे भग्ग-पोसहे विहरसि । तं णं तुमं पुत्ता ! एयस्स ठाणस्स आलोएहि जाव (पडिक्कमाहि, निंदाहि गरिहाहि, विउट्टाहि, विसोहेहि अकरणयाए, अब्भुट्ठाहि अहारिहं पायच्छित्तं तवो-कम्मं ) पडिवज्जाहि ।
तब भद्रा सार्थवाही श्रमणोपासक चुलनीपिता से बोली- पुत्र ! ऐसा कोई पुरूष नहीं था, जो तुम्हारे ज्येष्ठ पुत्र को घर से लाया हो, तुम्हारे आगे उसे मारा हो, तुम्हारे छोटे पुत्र को घर से लाया हो, तुम्हारे आगे उसकी हत्या की हो। यह तो तुम्हारे लिए कोई देव - उपसर्ग था । इसलिए, तुमने यह भयंकर दृश्य देखा। अब तुम्हारा व्रत, नियम और पोषध भग्न हो गया है-- खण्डित हो गया है। इसलिए पुत्र ! तुम इस स्थान- व्रत भंग रूप आचरण की आलोचना करो, (प्रतिक्रमण करो- पुनः शुद्ध अन्तःस्थिति में लौटो, इस प्रवृत्ति की निन्दा करो, गर्हा करो - आन्तरिक खेद अनुभव करो इससे जनित दोष का परिमार्जन करो, यथोचित प्रायश्चित्त के लिए अभ्युत्थित-: - उद्यत हो जाओ) तदर्थ तपःकर्म स्वीकार करो ।
विवेचन
प्रस्तुत सूत्र में देव द्वारा श्रमणोपासक चुलनीपिता के तीनों पुत्रों को उसकी आंखों के सामने तलवार से काट डाले जाने तथा उबलते पानी की कढ़ाही से खौलाए जाने के सम्बन्ध में जो उल्लेख है वह कोई वास्तविक घटना नहीं थी, देव-उपसर्ग था । इसका स्पष्टीकरण कामदेव के प्रकरण में किया