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________________ ७५२] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र भगवती व्याख्याप्रज्ञप्ति की उद्देश-विधि पप्णत्तीए आदिमाणं अट्ठण्हं सयाणं दो दो उद्देसया उद्दिसिजंति, णवरं चउत्थसए पढमदिवसे अट्ठ, बितियदिवसे दो उद्देसगा उद्दिसिजंति [१-८] । व्याख्याप्रज्ञप्ति के प्रारम्भ के आठ शतकों के दो-दो उद्देशकों का उद्देश (उपदेश या वाचना) एकएक दिन में दिया जाता है, किन्तु चतुर्थ शतक के आठ उद्देशकों का उद्देश पहले दिन किया जाता है, जबकि दूसरे दिन दो उद्देशों का किया जाता है। (१-८) नवमाओ सयाओ आरद्धं जावतियं ठाइ तावइयं उद्दिसिज्जइ उक्कोसेणं सयं पि एगदिवसेणं उद्दिसिजइ, मज्झिमेणं दोहिं दिवसेहिं सयं, जहन्नेणं तिहिं दिवसेहिं सतं। एवं जाव वीसइमं सतं। णवरं गोसालो एगदिवसेणं उद्दिसिज्जइ; जति ठियो एगेण चेव आयंबिलेणं अणुण्णव्वइ, अह ण ठियो आयंबिलछट्टेणं अणुण्णव्वति [९-२०] । नौवें शतक से लेकर आगे यावत् वीसवें शतक तक जितना-जितना शिष्य की बुद्धि में स्थिर हो सके, उतना-उतना एक दिन में उपदिष्ट किया जाता है। उत्कृष्टत: एक दिन में एक शतक का भी उद्देश (वाचन) दिया जा सकता है, मध्यम दो दिन में और जघन्य तीन दिन में एक शतक का पाठ दिया जा सकता है। किन्तु ऐसा वीसवें शतक तक किया जा सकता है। विशेष यह है कि इनमें से पन्द्रहवें गोशालकशतक का एक ही दिन में वाचन करना चाहिए। यदि शेष रह जाए तो दूसरे दिन आयंबिल करके वाचन करना चाहिए। फिर भी शेष रह जाए तो तीसरे दिन आयम्बिल का छट्ठ (बेला) करके वाचन करना चाहिए। [९-२०] एक्कवीस-बावीस-तेवीसतिमाइं सयाई एक्केक्कदिवसेणं उद्दिसिजंति [ २१-२३]। इक्कीसवें, बाईसवें और तेईसवें शतक का एक-एक दिन में उद्देश करना चाहिए। [२१-२३] । चउवीसतिमं चउहि दिवसेहिं—छ छ उद्देसगा [ २४] । चौवीसवें शतक के छह-छह उद्देशकों का प्रतिदिन पाठ करके चार दिनों में पूर्ण करना चाहिए [२४] । पंचवीसतिमं दोहिं दिवसेहिं—छ छ उद्देसगा [२५] । पच्चीसवें शतक के प्रतिदिन छह-छह उद्देशकों का प्रतिदिन पाठ करके दो दिनों में पूर्ण करना चाहिए। [२५] । गमियाणं आदिमाइं सत्त सयाई एक्केक्कदिवसेणं उद्दिसिजति [ २६-३२]। ' एगिंदियसताइं बारस एगेण दिवसेण [३३] । सेढिसयाई बारस एगेणं० [३४]। १. पाठान्तर-'बंधिसयाइंअट्रसयाई एगेणं दिवसेणं"
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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