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________________ भगवतीसूत्र का उपसंहार] [७५३ एगिदियमहाजुम्मसताई बारस एगेणं० [३५]। एक समान पाठ वाले बन्धीशतक आदि सात (२६ से ३२वें) शतक (आठ शतक—२६ से ३३ तक) का पाठवाचन एक दिन में, बारह एकेन्द्रियशतकों का वाचन एक दिन में (३३), बारह श्रेणी- . शतकों का वाचन एक दिन में (३४) तथा एकेन्द्रिय के बारह महायुम्पशतकों का वाचन एक ही दिन में करना चाहिए। [३५]। एवं बेंदियाणं बारस [३६], तेंइदियाणं बारस [३७], चउरिदियाणं बारस [३८], असन्निपंचेंदियाणं बारस [३९], सन्निपंचेंदियमहाजुम्मसयाई इक्कवीसं [४०], एगदिवसेणं उद्दिसिज्जंति। इसी प्रकार द्वीन्द्रिय के बारह (३६), त्रीन्द्रिय के बारह (३७) चतुरिन्द्रिय के बारह (३८), असंज्ञीपंचेन्द्रिय के बारह (३९) शतकों का तथा इक्कीस संज्ञीपंचेन्द्रियमहायुग्म शतकों (४०) का वाचन एक-एक दिन में करना चाहिए। रासिजुम्मसयं एगदिवसेणं उद्दिसिज्जइ। [४१] इकतालीसवें राशियुग्मशतक की वाचना भी एक दिन में दी जानी चाहिए। [४१] । वियसियअरविंदकरा नासियतिमिरा सुयाहिया देवी। - मझं पि देउ मेहं बुहविबुहणमंसिया णिच्चं ॥१॥ जिसके हाथ में विकसित कमल है, जिसने अज्ञानान्धकार का नाश किया है, जिसको बुध (पंडित) और विबुधों (देवों) ने सदा नमस्कार किया है, ऐसी श्रुताधिष्ठात्री देवी मुझे भी बुद्धि (मेधा) प्रदान करे ॥१॥ सुयदेवयाए णमिमो जीए पसाएण सिक्खियं नाणं। अण्णं पवयणदेवी संतिकरी तं नमसामि ॥ २॥ जिसकी कृपा से ज्ञान सीखा है, उस श्रुतदेवता को प्रणाम करता हूँ तथा शान्ति करने वाली उस प्रवचनदेवी को नमस्कार करता हूँ॥२॥ सुयदेवा य जक्खो कुंभधरो बंभसंति वेरोट्टा। विज्जा य अंतहुंडी देउ अविग्धं लिहंतस्स॥१॥ ॥समत्ता य भगवती॥ ॥ वियाह-पण्णत्तिसुत्तं समत्तं॥ श्रुतदेवता, कुम्भधर यक्ष, ब्रह्मशान्ति, वैरोट्यादेवी, विद्या और अन्तहुंडी, लेखक के लिए अविघ्न (निर्विघ्नता) प्रदान करे ॥३॥ __ विवेचन-उपसंहार-गत-विषय-(१) शतकादि का परिमाण-सर्वप्रथम सू. १ और २ में
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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