SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 850
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [७१९ चउत्थे सन्निपंचिंदियमहाजुम्मसए : एक्कारस उद्देसगा चतुर्थ संज्ञीपंचेन्द्रियमहायुग्मशतक : ग्यारह उद्देशक कापोतलेश्यी संज्ञीपंचेन्द्रिय की वक्तव्यता १. एवं काउलेस्ससयं वि, नवरं संचिट्ठणा जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं तिन्निसागरोवमाइं पलियोवमस्स असंखेजइभागमब्भहियाइं; एवं ठिती वि। एवं तिसु वि उद्देसएसु। सेसं तं चेव। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति० ॥४०।४।१-११॥ ॥ चत्तालीसइमे सते चउत्थं सयं॥ ४०-४॥ [१] इसी प्रकार कापोतलेश्याशतक के विषय में समझ लेना चाहिए। विशेष—संचिट्ठणाकाल जघन्य एक समय और उत्कष्ट पल्यापम के असंख्यातवें भाग अधिक तीन सागरोपम है। स्थिति भी इस इसी प्रकार तीनों उद्देशक जानना। शेष पूर्ववत्। "हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है', इत्यादि पूर्ववत् । . विवेचन—तृतीय नरकपृथ्वी के ऊपर प्रतर में रहने वाले नारक की स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक तीन सागरोपम की है और वहीं तक कापोतलेश्या है। इसलिए पूर्वोक्त स्थिति ही युक्तियुक्त है। ॥चालीसवाँ शतक : चतुर्थ अवान्तरशतक सम्पूर्ण॥ *** पंचमे सन्निपंचिंदियमहाजुम्मसए : एक्कारस उद्देसगा पंचम संज्ञीपंचेन्द्रियमहायुग्मशतक : ग्यारह उद्देशक तेजोलेश्यी संज्ञीपंचेन्द्रिय की वक्तव्यता १. एवं तेउलेस्सेसु वि सयं। नवरं संचिट्ठणा जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं दो सागरोवमाई पलियोवमस्स असंखेजइभागमब्भहियाइं; एवं ठिती वि, नवरं नोसण्णोवउत्ता वा। एवं तिसु वि गम(? उद्देस ) एसु। सेसं तं चेव। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति० ॥४०।५।१-११॥ ॥चत्तालीसइमे सते पंचमं सयं ॥ ४०-५॥ [१] तेजोलेश्याविशिष्ट (संज्ञी पंचेन्द्रिय) का शतक भी इसी प्रकार है। विशेष यह है कि संचिट्ठणाकाल जघन्य एक समय और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दो सागरोपम है। स्थिति भी इसी प्रकार है। किन्तु यहाँ नोसंज्ञोपयुक्त भी होते हैं । इसी प्रकार तीनों उद्देशकों के विषय में समझना चाहिए। शेष पूर्ववत् । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है', इत्यादि पूर्ववत् । विवेचन—यहाँ तेजोलेश्याविशिष्ट जीवों की जो उत्कृष्ट स्थिति कही है, वह ईशान देवलोक के देवों की उत्कृष्ट स्थिति की अपेक्षा है। ॥ चालीसवाँ शतक : पंचम अवान्तरशतक सम्पूर्ण॥ ***
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy