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________________ ७१८] तइए सन्निपंचिंदियमहाजुम्मसए: एक्कारस उद्देसगा तृतीय संज्ञीपंचेन्द्रियमहायुग्मशतक : ग्यारह उद्देशक नीलेश्यी संज्ञीपंचेन्द्रिय की वक्तव्यता १. एवं नीललेस्सेसु वि सयं । नवरं संचिट्टणा जहन्त्रेणं एक्कं समय, उक्कोसेणं दस सागरोवमाई पलिओवमस्स असंखेज्जइभागमब्भहियाई; एवं ठिती वि। एवं तिसु उद्देसएसु। सेसं तं चेव । सेवं भंते! सेवं भंते ! ति० ॥ ४० । ३ । १-११॥ ॥ चत्तालीसइमे सते ततियं सयं समत्तं ॥ ४०-३ ॥ [१] नीललेश्या वाले संज्ञी की वक्तव्यता भी इसी प्रकार समझनी चाहिए । विशेष यह है कि इसका ..संचिट्ठणाकाल जघन्य एक समय और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दस सागरोपम है। स्थिति भी इसी प्रकार समझनी चाहिए। इसी प्रकार पहले, तीसरे, पांचवें इन तीन उद्देशकों के विषय में जानना चाहिए। शेष पूर्ववत् । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है', इत्यादि पूर्ववत् । विवेचन— नीललेश्याविशिष्ट संज्ञी पंचेन्द्रिय की आयु — पांचवीं नरकपृथ्वी के ऊपर के प्रतर में पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दस सागरोपम का उत्कृष्ट आयुष्य है और वहाँ तक नीललेश्या है। यहाँ पूर्वभव के अन्तिम अन्तर्मुहूर्त को पल्योपम के असंख्यातवें भाग में ही समाविष्ट कर दिया है, इस कारण उस अन्तर्मुहूर्त का कथन नहीं किया गया है। ॥ चालीसवाँ शतक : तृतीय अवान्तरशतक सम्पूर्ण ॥ १. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ९७५ (ख) भगवती (हिन्दी - विवेचन) भा. ७, पृ. ३७७१ ***
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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