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________________ ७१०] अट्ठतीसइमं सयं: बारसचउरिंदियमहाजुम्मसयाई अड़तीसवाँशतक : द्वादश चतुरिन्द्रियमहायुग्मशतक द्वीन्द्रियमहायुग्मशतकानुसार द्वादश चतुरिन्द्रियमहायुग्मशतक-निरूपण १. चउरिदिएहि वि एवं चेव बारस सया कायव्वा, नवरं ओगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेजइभागं, उक्कोसेणं चत्तारि गाउयाई; ठिती जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं छम्मासा। सेसं जहा बेंदियाणं। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति०। ॥ अद्रुतीसइमे सए : बारस चउरिदियमहाजुम्मसया समत्ता॥ ३८।१-१२॥ ॥अद्रुतीसइमं सयं समत्तं ॥३८॥ _ [१] इसी प्रकार चतुरिन्द्रिय जीवों के बारह शतक कहने चाहिए। विशेष यह है कि इनकी अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग, उत्कृष्ट चार गाऊ की है तथा स्थिति जघन्य एक समय की और उत्कृष्ट छह महीने की है। शेष सब कथन द्वीन्द्रिय जीवों के शतक के समान है। भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते विवेचन द्वीन्द्रियमहायुग्मशतकानुसार वक्तव्यता—इन बारह चतुरिन्द्रियमहायुग्मशतकों की समग्र वक्तव्यता भी अवगाहना और स्थिति के अतिरिक्त द्वीन्द्रियमहायुग्मशतक के अनुसार बताई गई है। ॥ अड़तीसवाँ शतक : द्वादश चतुरिन्द्रियमहायुग्मशतक समाप्त॥ ॥ अड़तीसवाँ शतक सम्पूर्ण॥ ***
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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