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________________ [७११ एगूणयालीसइमं सयंः बारस असन्निपंचिंदियमहाजुम्मसयाई उनचालीसवाँशतक : द्वादश असंज्ञीपंचेन्द्रियमहायुग्मशतक द्वीन्द्रियमहायुग्मशतकानुसार द्वादश असंज्ञीपंचेन्द्रिय महायुग्मशतक-निरूपण . १. कडजुम्मकडजुम्मअसन्निपंचेंदिया णं भंते ! कओ उववजंति ? जहा बेंदियाणं तहेव असन्नीसु वि बारस सया कायव्वा, नवरं ओगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेजइभागं, उक्कोसेणं जोयणसहस्स; संचिट्ठणा जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं पुव्वकोडीपुहत्तं; ठिती जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी। सेसं जहा बेंदियाणं। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति। ॥ असण्णिपंचेंदियमहाजुम्मसया समत्ता॥ ३९-१-१२॥ ॥एगूणयालीसइमं सयं समत्तं ॥३९॥ [१ प्र.] भगवन् ! कृतयुग्म-कृतयुग्मराशिप्रमाण असंज्ञीपंचेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं? [१ उ.] गौतम ! द्वीन्द्रियशतक के समान असंज्ञीपंचेन्द्रिय जीवों के भी बारह शतक कहने चाहिए। विशेष यह है कि इनकी अवगाहना जघन्य अंगल के असंख्यातवें भाग की और उत्कष्ट एक हजार यो है तथा कायस्थिति (संचिट्ठणा) जघन्य एक समय की और उत्कृष्ट पूर्वकोटि-पृथक्त्व की है एवं भवस्थिति (स्थिति) जघन्य एक समय की और उत्कृष्ट पूर्वकोटि की है। शेष पूर्ववत् द्वीन्द्रिय जीवों के समान है। __'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते विवेचन द्वीन्द्रियशतक के समान–अवगाहना, कायस्थिति और भवस्थिति के सिवाय असंज्ञीपंचेन्द्रियमहायुग्म के १२ शतकों का शेष समग्र कथन द्वीन्द्रियशतक के समान प्रस्तुत शतक में बताया गया है। ॥ उनचालीसवां शतक : द्वादश असंज्ञीपंचेन्द्रियमहायुग्मशतक सम्पूर्ण॥ ॥ उनचालीसवाँ शतक समाप्त॥ ३९॥ ***
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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