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________________ [७०५ बिइए बेइंदियमहाजुम्मसए: पढमाइएक्कारसपजंता उद्देसगा. द्वितीय द्वीन्द्रियमहायुग्मशतंक : पहले से ग्यारहवें उद्देशक तक १. कण्हलेस्साकडजुम्मकडजुम्मबेंदिया णं भंते ! कतो उववजंति ? एवं चेव। कण्हलेस्सेसु वि एक्कारस उद्देसगसंजुत्तं सयं, नवरं लेसा, संचिट्ठणा' जहा एगिदियकण्हलेस्साणं। ॥ छत्तीसइमे सए : बिइए बेइंदियमहाजुम्मसए पढमाइ-एक्कारस-पजंता उद्देसगा समत्ता॥ ॥बितियं बेंदियसयं समत्तं ॥३६-२॥ [१ प्र.] भगवन् ! कृष्णलेश्या वाले कृतयुग्म-कृतयुग्मराशिप्रमाण द्वीन्द्रिय से आकर उत्पन्न होते हैं ? [१ उ.] गौतम ! इस विषय में पूर्ववत् जानना चाहिए। कृष्णलेश्यी जीवों का भी शतक ग्यारह . उद्देशक-युक्त जानना चाहिए। विशेष यह है कि इनकी लेश्या और संचिट्ठणा (कायस्थिति) स्थिति (भवस्थिति). कृष्णलेश्यी एकेन्द्रिय जीवों के समान होती है। विवेचन—प्रस्तुत ग्यारह उद्देशकों में कृष्णलेश्याविशिष्ट द्वीन्द्रियमहायुग्म जीवों के सम्बन्ध में लेश्या, कायस्थिति आदि के अतिरिक्त शेष सर्वकथन एकेन्द्रियजीवों के समान बताया गया है। ॥ छत्तीसवाँ शतक : द्वितीय द्वीन्द्रियमहायुग्मशतक के ग्यारह उद्देशक सम्पूर्ण॥ ॥ द्वितीय द्वीन्द्रियशतक समाप्त॥ *** १. किसी किसी प्रति में 'संचिणा' के आगे 'ठिई' शब्द मिलता है। वहाँ 'स्थिति' से भवस्थिति अर्थ समझना चाहिए।
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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