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________________ ७०४] पढमे बेइंदियमहाजुम्मसए: तइयाइएक्कारसमपज्जंता उद्देसगा प्रथम द्वीन्द्रियमहायुग्मशतक : तीसरे से ग्यारहवें उद्देशक पर्यन्त कुछ विशेषताओं के साथ तीसरे से ग्यारहवें उद्देशक-पर्यन्त प्ररूपणा १. एवं एए वि जहा एगिदियमहाजुम्मेसु एक्कारस उद्देसगा तहेव भाणियव्वा, नवरं चउत्थअट्ठम-दसमेसु सम्मत्त-नाणाणि न भण्णंति। जहेव एगिदिएसु; पढमो ततिओ पंचमो य एक्कगमा, सेसा अट्ठ एक्कागमा। ॥ छत्तीसइमे सए : पढम बेइंदियमहाजुम्मसए तइयाइएक्कारसमपजंता उद्देसगा समत्ता॥ ३६।१।३-११॥ ॥ पढम बेंदियमहाजुम्मसयं ॥३६-१॥ . [१] एकेन्द्रियमहायुग्म-सम्बन्धी ग्यारह उद्देशकों के समान यहाँ भी कहना चाहिए। किन्तु यहाँ चौथे, (छठे) आठवें और दसवें उद्देशकों में सम्यक्त्व और ज्ञान का कथन नहीं होता। एकेन्द्रिय के समान प्रथम, तृतीय और पंचम, इन तीन उद्देशकों के एकसरीखे पाठ हैं, शेष आठ उद्देशक एक समान हैं। ॥ छत्तीसवें शतक के प्रथम द्वीन्द्रियमहायुग्मशतक के तीसरे से ग्यारहवें उद्देशक तक सम्पूर्ण॥ ॥ प्रथम द्वीन्द्रियमहायुग्मशतक समाप्त॥ यहाँ किसी प्रति में चउत्थ' शब्द के वाद'छ' शब्द मिलता है। इस दृष्टि से चौथे, छठे, आठवें और दसवें उद्देशकों में सम्यक्त्व और ज्ञान नहीं होता, ऐसा अर्थ किया गया है। -सं.
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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