SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 834
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [७०३ पढमे बेइंदियमहाजुम्मसए : बिइओ उद्देसओ प्रथम द्वीन्द्रिय शतक : द्वितीय उद्देशक एकेन्द्रिय महायुग्मशतक के अतिदेशपूर्वक प्रथमसमय-द्वीन्द्रियमहायुग्मवक्तव्यता १. पढमसमयकडजुम्मकडजुम्मबंदिया णं भंते ! कतो उववजंति ? एवं जहा एगिंदियमहाजुम्माणं पढमसमयुद्देसए दस नाणत्ताई ताई चेव दस इह वि। एक्कारसमं इमं नाणत्तं—नो मणजोगी, नो वइजोगी, कायजोगी। सेसं जहा एगिंदियाणं चेव पढमुद्देसए। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति। ॥ छत्तीसइमे सए : पढम बेइंदियमहाजुम्मसए : बिइओ उद्देसओ समत्तो॥३६-१।२॥ [१ प्र.] भगवन् ! प्रथमसमयोत्पन्न कृतयुग्म-कृतयुग्मराशिप्रमाण द्वीन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? [१ उ.] गौतम ! जिस प्रकार एकेन्द्रियमहायुग्मों का प्रथमसमय-सम्बन्धी उद्देशक कहा गया है, उसी प्रकार इनके विषय में भी जानना। वहाँ दस बातों का अन्तर बताया है, यहाँ भी उन दस बातों का अन्तर समझना। ग्यारहवीं विशेषता यह है कि ये मनोयोगी और वचनयोगी नहीं होते, सिर्फ काययोगी होते हैं। शेष सब बातें एकेन्द्रियमहायुग्मों के प्रथम उद्देशक के समान जानना। ___हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते - विवेचन—निष्कर्ष प्रस्तुत द्वितीय उद्देशक में प्रथमसमयोत्पन्न द्वीन्द्रियमहायुग्म-सम्बन्धी वत्तीस द्वारों की प्ररूपणा एकेन्द्रियमहायुग्म के प्रथमसमय-सम्बन्धी उद्देशक के अतिदेशपूर्वक की गई है। एकेन्द्रियमहायुग्मों में उक्त १० वातों का अन्तर इनमें भी है। ग्यारहवीं विशेषता है—ये मात्र काययोगी होते हैं। ॥ छत्तीसवें शतक के प्रथम द्वीन्द्रियमहायुग्मशतक का द्वितीय उद्देशक समाप्त॥ ***
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy