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________________ ७०२] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र ___ [३] उनकी स्थिति जघन्य एक समय की और उत्कृष्ट बारह वर्ष की होती है। वे नियमत: छह दिशा का आहार लेते हैं। उनमें (पहले के) तीन समुद्घात होते हैं। शेष पूर्ववत् पहले अनन्त बार उत्पन्न हुए हैं, यहाँ तक जानना। ४. एवं सोलससु वि जुम्मेसु। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति०। ॥ पढमे बेंदियमहाजुम्मसते : पढमो उद्देसओ समत्तो ॥ ३६-१-१॥ [४] इसी प्रकार द्वीन्द्रिय जीवों के सोलह महायुग्मों में कहना चाहिए।' 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं ॥ छत्तीसवाँ शतक : प्रथम अवान्तरशतक : प्रथम उद्देशक सम्पूर्ण॥ *** द्वीन्द्रिय जीवों के १६ महायुग्मों को ३२ द्वारों द्वारा प्ररूपित किया गया है। ३२ द्वारों के लिए देखिए-भगवतीसूत्र शतक ११ का द्वितीयसूत्र । -वियाहपण्णत्तिसुत्तं भा. ३ (मू.पा.टि.), पृ. ११५५
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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