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चौतीसवाँ शतक : उद्देशक-२]
[६६९ अपर्याप्त बादर एकेन्द्रिय जीव के भी उपपातादि जानने चाहिए तथा सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों के उपपात, समुद्घात और स्वस्थान के अनुसार सभी सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीव यावत् वनस्पतिकायिक पर्यन्त जानना चाहिए।
४. अणंतरोववन्नगसुहुमपुढविकाइयाणं भंते ! कति कम्मप्पगडीओ पन्नत्ताओ?
गोयमा ! अट्ठ कम्मप्पगडीओ पन्नत्ताओ, एवं जहा एगिंदियसतेसु अणंतरोववन्नगउद्देसए (स० ३३-१-२ सु० ४-६) तहेव पत्नत्ताओ, तहेव (स० ३३-१-२ सु० ७-८) बंधंति, तहेव (स० ३१-१-२ सु० ९) वेदेति जाव अणंतरोववन्नगा बायरवणस्सतिकाइया।
[४ प्र.] भगवन् ! अनन्तरोपपन्नक सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों के कितनी कर्मप्रकृतियाँ कही हैं ?
[४ उ.] गौतम ! उनके आठ कर्मप्रकृतियाँ कही हैं, इत्यादि एकेन्द्रियशतक में उक्त अनन्तरोपपन्नक उद्देशक के समान उसी प्रकार बांधते हैं, और वेदते हैं, यहाँ तक इसी प्रकार अनन्तरोपपन्नक बादर वनस्पतिकायिक पर्यन्त जानना चाहिए।
५. अणंतरोववन्नगएगिदिया णं भंते ! कओ उववजंति ? . जहेव ओहिए उद्देसओ भणियो।
[५ प्र.] भगवन् ! अनन्तरोपपन्नक एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? [५ उ.] गौतम ! यह भी औधिक उद्देशक के अनुसार कहना चाहिए। ६. अणंतरोववन्नगएगिंदियाणं भंते ! कति समुग्घाया पन्नत्ता ? गोयमा ! दोन्नि समुग्घाया पन्नत्ता, तं जहा—वेयणासमुग्घाए य कसायसमुग्घाए य। [६ प्र.] भगवन् ! अनन्तरोपपन्नक एकेन्द्रिय जीवों के कितने समुद्घात कहे हैं ? [६ उ.] गौतम ! उनके दो समुद्घात कहे हैं, यथा-वेदनासमुद्घात और कषायसमुद्घात ।
७.[१] अणंतरोववन्नगएगिंदिया णं भंते ! किं तुल्लद्वितीया तुल्लविसेसाहियं कम्मं पकरेंति० पुच्छा० तहेव।
गोयमा ! अत्थेगइया तुल्लट्ठितीया तुल्लविसेसाहियं कम्मं पकरेंति, अत्थेगइया तुल्लट्ठितीया वेमायविसेसाहियं कम्मं पकरेंति। __ [७-१ प्र.] भगवन् ! क्या तुल्यस्थिति वाले अनन्तरोपपन्नक एकेन्द्रिय जीव परस्पर तुल्य, विशेषाधिक कर्मबन्ध करते हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न।
[७-१ उ.] गौतम ! कई तुल्यस्थिति वाले एकेन्द्रिय जीव तुल्य-विशेषाधिक कर्मबन्ध करते हैं और कई तुल्यस्थिति वाले एकेन्द्रिय जीव विमात्र-विशेषाधिक कर्मबन्ध करते हैं।
[२] से केणढेणं जाव वेमायविसेसाहियं कम्मं पकरेंति ? गोयमा ! अणंतरोववनगा एगिंदिया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा—अत्थेगइया समाउया समोवनगा,