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________________ इकतीसवां शतक : उद्देशक-१] [६७ विवेचन क्षुद्रयुग्म : स्वरूप और प्रकार-लघुसंख्या (अल्पसंख्या) वाली राशि-विशेष को क्षुद्रयुग्म कहते हैं। इनमें से चार, आठ, बारह आदि संख्या वाली राशि को 'क्षुद्रकृतयुग्म' कहते हैं। तीन, सात, ग्यारह आदि संख्या वाली राशि को 'क्षुद्रत्र्योज' कहते हैं। दो, छह, दस आदि संख्या वाली राशि को 'क्षुद्रद्वापरयुग्म' कहते हैं और एक, पांच, नौ आदि संख्या वाली राशि को 'क्षुद्रकल्योज' कहते हैं । - चतुर्विध क्षुद्रयुग्म नैरयिकों के उपपात के सम्बन्ध में विविध प्ररूपणा ३. खुड्डागकडजुम्मनेरइया णं भंते ! कओ उववजंति ? किं नेरइएहितो उववजंति, तिरिक्व० पुच्छा। गोयमा ! नो नेरइएहिंतो उववजंति, एवं नेरतियाणं उववातो जहा वक्कंतीए तहा भाणितव्यो। ___[३ प्र.] भगवन् ! क्षुद्रकृतयुग्म-राशिपरिमाण नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं ? अथवा तिर्यञ्चयोनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न। . [३ उ.] गौतम ! वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न नहीं होते, (किन्तु पंचेन्द्रियतिर्यञ्च और गर्भज मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं ।) इत्यादि प्रज्ञापनासूत्र के छठे व्युत्क्रान्तिपद में कथित नैरयिकों के उपपात के अनुसार यहाँ कहना चाहिए। ४. ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवतिया उववजंति ? गोयमा ! चत्तारि वा, अट्ठ वा, बारस वा, सोलस वा, संखेजा वा, असंखेजा वा उववजंति। [४ प्र.] भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? [४ उ.] गौतम ! वे चार, आठ, बारह, सोलह, संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं। ५. ते णं भंते ! जीवा कहं उववजंति ? गोयमा ! से जहानामए पवए पवमाणे अज्झवसाण एवं जहा पंचवीसतिमे सते 'अट्ठमुद्देसए नेरइयाणं वत्तव्वया तहेव इह वि भाणियव्वा ( स०२५ उ०८ सु०२-८) जाव आयप्पयोगेण उववजंति; नो परप्पयोगेण उववजंति। [५ प्र.] भगवन् ! वे जीव किस प्रकार उत्पन्न होते हैं ? [५ उ.] गौतम ! जिस प्रकार कोई कूदने वाला, कूदता-कूदता अपने पूर्वस्थान को छोड़ कर आगे के स्थान को प्राप्त करता है, इसी प्रकार नैरयिक भी पूर्ववर्ती भव को छोड़ कर अध्यवसायरूप कारण से आगामी भव को प्राप्त करते हैं, इत्यादि पच्चीसवें शतक के आठवें उद्देशक (सू. २ से ८ तक) में उक्त नैरयिक-सम्बन्धी वक्तव्यता के समान यहाँ भी कहना चाहिए कि यावत् वे आत्मप्रयोग से उत्पन्न होते हैं, परप्रयोग से उत्पन्न नहीं १. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ९५० (ख) श्रीमद्भगवतीसूत्रम् खण्ड ४ (गुजराती-अनुवाद) पृ. ३११
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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