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________________ ६०६] एगतीसइमं सयं-उवववायसयं इकतीसवाँशतक-उपपातशतक पढमो उद्देसओ : प्रथम उद्देशक क्षुद्रयुग्म-सम्बन्धी क्षुद्रयुग्म : नाम और प्रकार १. रायगिहे जाव एवं वयासी[१] राजगृह नगर में गौतमस्वामी ने यावत् इस प्रकार पूछा२. [१] कति णं भंते खुड्डा जुम्मा पन्नत्ता ? गोयमा ! चत्तारि खुड्डा जुम्मा पन्नत्ता, तं जहा–कडजुम्मे, तेयोए, दावरजुम्मे, कलियोए। [२-१ प्र.] भगवन् ! क्षुद्रयुग्म कितने कहे हैं ? [२-१ उ.] गौतम ! क्षुद्रयुग्म चार कहे हैं यथा—कृतयुग्म, त्र्योज, द्वापरयुग्म और कल्योज। [२] से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-चत्तारि खुड्डा जुम्मा पन्नत्ता, तं जहा कडजुम्मे जाव कलियोगे? गोयमा ! जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे चउपज्जवसिए से त्तं खुड्डागकडजुम्मे। जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे तिपजवसिए से तं खुड्डागतेयोगे। जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे दुपज्जवसिए से त्तं खुड्डागदावरजुम्मे। जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे एगपजवसिए से त्तं खुड्डागलियोगे। से तेणटेणं जाव कलियोगे। [२-२ प्र.] भगवन् ! यह क्यों कहा जाता है कि क्षुद्रयुग्म चार हैं, यथा— कृतयुग्म यावत् कल्योज? [२-२ उ.] गौतम ! जिस राशि में चार-चार का अपहार करते हुए अन्त में चार रहें, उसे क्षुद्रकृतयुग्म कहते हैं । जिस राशि में चार-चार का अपहार करते हुए अन्त में तीन शेष रहें, उसे क्षुद्रत्र्योज कहते हैं। जिस राशि में से चार-चार का अपहार करते हुए अन्त में दो शेष रहें, उसे क्षुद्रद्वापरयुग्म कहते हैं और जिस राशि में से चार-चार का अपहार करते हुए अन्त में एक ही शेष रहे, उसे क्षुद्रकल्योज कहते हैं। इस कारण से हे गौतम ! यावत् कल्योज कहा है।
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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