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________________ ६०४] चउत्थाइ-एक्कारस-पज्जता उद्देसगा चतुर्थ से लेकर ग्यारहवें उद्देशक तक छव्वीसवें शतक के क्रम से चौथे से ग्यारहवें उद्देशक तक की प्ररूपणा १. एवं एएणं कमेणं जच्चेव बंधिसए उद्देसगाणं परिवाडी सच्चेव इहं पि जाव अचरिमो उद्देसो, नवरं अणंतरां चत्तारि वि एक्कगमगा। परंपरा चत्तारि वि एक्कगमएणं। एवं चरिमा वि, अचरिमा वि एवं चेव, नवरं अलेस्सो केवली अजोगी य भएति। सेसं तहेव। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति। ॥ तीसइमे सए : चउत्थाइ-एक्कारस-पजंता उद्देसगा समत्ता॥३०॥४-११॥ ॥तीसइमं समवसरणसयं समत्तं॥३०॥ [१] इसी प्रकार और इसी क्रम से बन्धीशतक में उद्देशकों की जो परिपाटी है, वही परिपाटी यहाँ भी अचरम उद्देशक पर्यन्त समझनी चाहिए। विशेष यह है कि 'अनन्तर' शब्द से विशेषित चार उद्देशक एक गम (समान पाठ) वाले हैं । 'परम्पर' शब्द से विशेषित चार उद्देशक एक गम वाले हैं। इसी प्रकार 'चरम' और 'अचरम' विशेषणयुक्त उद्देशकों के विषय में भी समझना चाहिए, किन्तु अलेश्यी, केवली और अयोगी का कथन यहाँ (अचरम उद्देशक में) नहीं करना चाहिए। शेष सब पूर्ववत् है। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं। . विवेचन—जो जीव अचरम हैं, वे अलेश्यी, अयोगी या केवलज्ञानी नहीं हो सकते, इसलिए अचरम उद्देशक में इनका कथन नहीं करना चाहिए।' इस प्रकार ये ग्यारह उद्देशक हुए। ॥ तीसवाँ शतक : चौथे से ग्यारहवें उद्देशक तक समाप्त॥ ॥ तीसवाँ समवसरणशतक सम्पूर्ण॥ *** १. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ९४८ (ख) भगवती. (हिन्दी-विवेचन) भाग ७, पृ. ३६३३
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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