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________________ ५६४] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र विवेचन छव्वीसवें और सत्ताईसवें शतक में अन्तर—जिस प्रकार छब्बीसवें शतक में प्रत्येक प्रश्न के प्रारम्भ में 'बंधी' शब्द का प्रयोग किया गया होने से वह 'बंधीशतक' कहलाता है, किन्तु इस सत्ताईसवें शतक में प्रत्येक प्रश्न के प्रारम्भ में करिसु' पद प्रयुक्त हुआ है, इसलिए इसे 'करिंसुशतक' कहते हैं। सत्ताईसवें शतक के सभी प्रश्न और उनके उत्तर छव्वीसवें शतक के समान हैं—विषय में थोड़ा अन्तर है, छव्वीसवें में त्रैकालिक पापकर्मबन्ध-सम्बन्धी प्रश्न हैं, जबकि सत्ताईसवें शतक में त्रैकालिक पापकर्मकरणसम्बन्धी प्रश्न हैं। शंका–छव्वीसवें शतक में प्रयुक्त 'बन्ध' और सत्ताईसवें शतक में प्रयुक्त करण' में क्या अन्तर है ? समाधान—यद्यपि 'बन्ध' और 'करण' में कोई अन्तर नहीं है, तथापि यहाँ पृथक् शतक के रूप में कथन करने का कारण यह है कि शास्त्रकार इस सिद्धान्त का प्रतिपादन करना चाहते हैं कि जीव की जो कर्मबन्ध-क्रिया है, वह जीवकृत ही है, अर्थात्-वह कर्मबन्ध-क्रिया जीव के द्वारा ही हुई है, ईश्वरादिकृत नहीं। अथवा—'बन्ध' का अर्थ है—सामान्यरूप से कर्म को बांधना, जबकि 'कारण' का अर्थ है—कर्मों को निधत्तादिरूप से बांधना, जिससे विपाकादिरूप से उनका फल अवश्य भोगना पड़े, इत्यादि तथ्यों को व्यक्त करने के लिए 'बन्ध' और 'करण' का पृथक्-पृथक् कथन किया है।' ॥ सत्ताईसवाँ शतक : ग्यारह उद्देशक समाप्त॥ ॥ सत्ताईसवाँ करिसु' शतक सम्पूर्ण॥ १. भगवती. (हिन्दी-विवेचन) भा.७. पृ. ३५८५ २. (क) वही (हिन्दी-विवेचन) भा.७, पृ. ३५८५-३५८६ (ख) भगवती. अ. वृत्ति. पत्र ९३८
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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