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________________ [५६३ सत्तावीसइमं सयं : करिसुसयं सत्ताईसवाँ शतक : “किया था' इत्यादि शतक प्रथम से लेकर ग्यारहवें उद्देशक तक छव्वीसवें शतक की वक्तव्यतानुसार ज्ञानावरणीयादि पापकर्मकरण-प्ररूपणा १. जीवे णं भंते ! पावं कम्मं किं करिसु, करेति, करिस्सति; करिसु, करेति, न करेस्सति; करिंसु, न करेइ, करिस्सति; करिंसु, न करेइ, न करेस्सइ ? गोयमा ! अत्थेगतिए करिंसु, करेति, करिस्सति; अत्यंगतिए करिसु, करेति, न करिस्सति; अत्थेगतिए करिंसु, न करेति, करेस्सति; अत्थेगतिए करिंसु, न करेति, न करेस्सति। [१ प्र.] भगवन् ! (१) क्या जीव ने पापकर्म किया था, करता है और करेगा? (२) अथवा किया था, करता है, और नहीं करेगा? या (३) किया था, नहीं करता और करेगा? (४) अथवा किया था, नहीं करता, और नहीं करेगा। [१ उ.] गौतम ! (१) किसी जीव ने पापकर्म किया था, करता है और करेगा। (२) किसी जीव ने किया था, करता है और नहीं करेगा। (३) किसी जीव ने किया था, नहीं करता है और करेगा। (४) किसी जीव ने किया था, नहीं करता है और नहीं करेगा। २. सलेस्से णं भंते ! जीवे पावं कर्म ? एवं एएणं अभिलावेणं जच्चेव बंधिसते वत्तव्वया सच्चेव निरवसेसा भाणियव्वा, तह चेव नवदंडगसंगहिया एक्कारस उद्देसगा भाणितव्वा। ॥ सत्तावीसइमस्स सयस्स एक्कारस उद्देसगा समत्ता॥ २७।१-११॥ ॥सत्तावीसइमं सयं : करिसुसयं समत्तं ॥२७॥ [२ प्र.] भगवन् ! सलेश्य जीव ने पापकर्म किया था? इत्यादि पूर्वोक्त बन्धिशतकानुसार सभी प्रश्न । [२ उ.] (गौतम ! ) बन्धीशतक (छव्वीसवें शतक) में जो वक्तव्यता इस (पूर्वोक्त) अभिलाप (पाठ) द्वारा कही थी, वह सभी यहाँ कहनी चाहिए तथा उसी प्रकार नौ दण्डकसहित ग्यारह उद्देशक भी यहाँ कहने चाहिए।
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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