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________________ ५६२] [व्याख्यांप्रज्ञप्तिसूत्र सकता, क्योंकि जो एक बार वेदनीयकर्म का प्रबन्धक हो जाता है, वह फिर वेदनीयकर्म कदापि नहीं बांधता। चौथा भंग अयोगी-अवस्था में होता है, इसलिए वह अचरम में नहीं बनता। ___ आयुकर्म-बन्ध के विषय में नैरयिक में पहला और तीसरा भंग पाया जाता है। प्रथम भंग का घटित होना स्पष्ट है। तीसरे भंग की घटना इस प्रकार है-उसने आयुकर्म बांधा था, वर्तमान में (अबन्धकाल में) नहीं बांधता, परन्तु भविष्य में बन्धकाल में बांधेगा, क्योंकि यह अचरम है। इसमें दूसरा और चौथा भंग घटित नहीं हो सकता, क्योंकि अचरम होने से आयु का बन्ध अवश्य करेगा, इसलिए दूसरा भंग नहीं बनता अन्यथा उसका अचरमत्व ही नहीं हो सकता और इसी युक्ति से चौथा भंग भी घटित नहीं होता। शेष पदों की घटना पूर्ववत् कर लेनी चाहिए। ॥छव्वीसवां शतक : ग्यारहवाँ उद्देशक सम्पूर्ण॥ ॥छब्बीसवाँ बन्धीशतक समाप्त॥ १. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ९३७-९३८ (ख) भगवती. (हिन्दी-विवेचन) भा. ७, पृ. ३५८३
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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