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________________ ५४६] बीओ उद्देसओ : द्वितीय उद्देशक अनन्तरोपपन्नक को पापकर्मादिबन्ध अनन्तरोपपन्नक नारकादि चौवीस दण्डकों में पापकर्मबन्ध की अपेक्षा ग्यारह स्थानों की प्ररूपणा १. अणंतरोववन्नए णं भंते ! नेरतिए पावं कम्मं किं बंधी० पुच्छा तहेव। गोयमा ! अत्थेगतिए बंधी० पढम-बितिया भंगा। [१ प्र.] भगवन् ! क्या अनन्तरोपपत्रक नैरयिक ने पापकर्म बांधा था? इत्यादि पूर्ववत् चतुर्भगीय प्रश्न । [१ उ.] गौतम ! किसी ने पापकर्म बांधा था, इत्यादि प्रथम और द्वितीय भंग होता है। २. सलेस्से णं भंते ! अणंतरोववन्नए नेरतिए पावं कम्मं किं बंधी० पुच्छा। गोयमा ! पढम-बितिया भंगा, नवरं कण्हपक्खिए ततिओ। [२ प्र.] भगवन् ! सलेश्यी अनन्तरोपपन्नक नैरयिक ने पापकर्म बांधा था ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न । [२ उ.] गौतम ! इनमें सर्वत्र प्रथम और द्वितीय भंग पाया जाता है। किन्तु कृष्णपाक्षिक में तृतीय भंग पाया जाता है। ३. एवं सव्वत्थ पढम-बितिया भंगा, नवरं सम्मामिच्छत्तं मणजोगो वइजोगो य न पुच्छिज्जइ। [३] इस प्रकार सभी पदों में पहला और दूसरा भंग कहना चाहिए, किन्तु विशेष यह है कि सम्यग्मिथ्यात्व, मनोयोग और वचनयोग के विषय में प्रश्न नहीं करना चाहिए। ४. एवं जाव थणियकुमाराणं। [४] स्तनितकुमार पर्यन्त इसी प्रकार कहना चाहिए। ५. बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिदियाणं वइजोगो न भण्णति। [५] द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय में वचनयोग नहीं कहना चाहिए। ६. पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पि सम्मामिच्छत्तं ओहिनाणं विभंगनाणं मणजोगो, वइजोगो, एयाणि पंच ण भण्णंति। [६] पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों में भी सम्यग्मिथ्यात्व, अवधिज्ञान, विभंगज्ञान, मनोयोग और वचनयोग, ये पांच पद नहीं कहने चाहिये।
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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