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________________ ५३६ ] [५० ] अलेश्यजीव में अन्तिम (चतुर्थ) भंग पाया जाता है। ५१. कण्हपक्खिए पढम- बितिया । [५१] कृष्णपाक्षिक में प्रथम और द्वितीय भंग जानना चाहिए। ५२. सुक्कपक्खिए ततियविहूणा । [५२] शुक्लपाक्षिक में तृतीय भंग को छोड़ कर शेष तीनों भंग पाये जाते हैं। ५३. एवं सम्मद्दिट्ठिस्स वि । [ व्याख्याप्रज्ञप्तिमूत्र [५३] इसी प्रकार सम्यग्दृष्टि में भी ये ही तीनों भंग जानने चाहिए। ५४. मिच्छद्दिट्ठिस्स सम्मामिच्छादिट्ठिस्स य पढम- बितिया । [५४] मिथ्यादृष्टि और सम्यग्दृष्टि में प्रथम और द्वितीय भंग जानना । ५५. णाणिस्स ततियविहूणा । [ ५५ ] ज्ञानी में तृतीय भंग को छोड़कर शेष तीनों भंग समझने चाहिए। ५६. आभिनिबोहियनाणी जाव मणपज्जवनाणी पढम - बितिया । [ ५६ ] आभिनिबोधिकज्ञानी से लेकर मनः पर्यवज्ञानी तक में प्रथम और द्वितीय भंग जानना । ५७. केवलनाणी ततियविहूणा । [५७] केवलज्ञानी में तृतीय भंग के सिवाय शेष तीनों भंग पाये जाते हैं। ५८. एवं नोसन्नोवउत्ते, अवेदए, अकसायी, सागरोवउत्ते, अणागारोवउत्ते, एएसु ततियविहूणा । [५८] इसी प्रकार नोसंज्ञोपयुक्त में, अवेदी में, अकषायी में, साकारोपयुक्त एवं अनाकारोपयुक्त में भी तृतीय भंग को छोड़कर शेष तीनों भंग पाये जाते हैं । ५९. अजोगिम्मि य चरिमो । [ ५९ ] अयोगी में अन्तिम (चतुर्थ) भंग जानना चाहिए। सेसेसु पढम - वितिया । ६०. [६०] शेष सभी में प्रथम और द्वितीय भंग जानना चाहिए। ६१. नेरइए णं भंते ! वेयणिज्जं कम्मं किं बंधी, बंधइ० ? एवं नेरइयाइया जाव वेमाणियति, स्स जं अस्थि । सव्वत्थ वि पढम- बितिया, नवरं मणुस्से जहा जीवे ।
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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