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________________ छब्बीसवाँ शतक : उद्देशक-१] [ ५३५ जीव और चौवीस दण्डकों में ज्ञानावरणीय से लेकर मोहनीय-कर्मबन्ध तक की चतुर्भगीयप्ररूपणा ग्यारह स्थानों में ४४. जीवे णं भंते ! नाणावरणिजं कम्मं किं बंधी, बंधति, बंधिस्सति०? एवं जहेव पावस्स कम्मस्स वत्तव्वया भणिया तहेव नाणवरणिजस्स वि भाणियव्वा, नवरं जीवपए मणुस्सपए य सकसायिम्मि जाव लोभकसाइम्मि य पढम-बितिया भंगा। अवसेसं तं चेव जाव वेमाणिए। [४४ प्र.] भगवन् ! क्या जीव ने ज्ञानावरणीय कर्म बांधा था, बांधता है और बांधेगा ? इत्यादि चातुभंगिक प्रश्न। [४४ उ.] गौतम ! जिस प्रकार पापकर्म की वक्तव्यता कही है, उसी प्रकार ज्ञानावरणीयकर्म की वक्तव्यता कहनी चाहिए। परन्तु (औधिक) जीवपद और मनुष्यपद में सकषायी (से लेकर) यावत् लोभकषायी में प्रथम और द्वितीय भंग ही कहना चाहिए। शेष सब कथन पूर्ववत् यावत् वैमानिक तक कहना चाहिए। ४५. एवं दरिसणावरणिजेण वि दंडगो भाणियव्वो निरवसेसं। [४५] ज्ञानावरणीयकर्म के समान दर्शनावरणीयकर्म के विषय में भी समग्र दण्डक कहने चाहिए। ४६. जीवे णं भंते ! वेयणिजं कम्मं किं बंधी० पुच्छा। गोयमा ! अत्थेगतिए बंधी, बंधति, बंधिस्सति; अत्थेगतिए बंधी, बंधति, न बंधिस्सति; अत्थेगतिए बंधी, न बंधति, न बंधिस्सति। [४६ प्र.] भगवन् ! क्या जीव ने वेदनीयकर्म बांधा था, बांधता है और बांधेगा? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न। _ [४६ उ.] गौतम ! (१) किसी जीव ने (वेदनीयकर्म) बांधा था, बांधता है और बांधेगा, (२) किसी जीव ने बांधा था, बांधता है और नहीं बांधेगा तथा (३) किसी जीव ने (वेदनीयकर्म) बांधा था, नहीं बांधता है और नहीं बांधेगा। ४७. सलेस्से वि एवं चेव ततियविहूणा भंगा। [४७] सलेश्य जीव में भी तृतीय भंग को छोड़ कर शेष तीन भंग पाये जाते हैं। ४८. कण्हलेस्से जाव पम्हलेस्से पढम-बितिया भंगा। [४८] कृष्णलेश्या वाले से लेकर पद्मलेश्या वाले जीव तक में पहला और दूसरा भंग पाया जाता है। ४९. सुक्कलेस्से ततियविहूणा भंगा। [४९] शुक्ललेश्या वाले में तृतीय भंग को छोड़कर शेष तीन भंग पाये जाते हैं। ५०. अलेस्से चरिमो।
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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