________________
छब्बीसवां शतक : उद्देशक-१]
[५२७ द्वितीय स्थान : सलेश्य-अलेश्य जीवों की अपेक्षा पापकर्मबन्ध-निरूपण
५. सलेस्से णं भंते ! जीवे पावं कम्मं किं बंधी, बंधति, बंधिस्सति; बंधी, बंधति, न बंधिस्सति० पुच्छा।
गोयमा ! अत्थेगतिए बंधी, बंधति, बंधिस्सति; अत्थेगतिए०, चउभंगो।
[५ प्र.] भगवन् ! सलेश्य जीव ने क्या पापकर्म बांधा था, बांधता है और बांधेगा? अथवा बांधा था, बांधता है और नहीं बांधेगा? इत्यादि चारों प्रश्न।
[५ उ.] गौतम ! किसी लेश्या वाले जीव ने पापकर्म बांधा था, बांधता है और बांधेगा; इत्यादि चारों भंग जानने चाहिए।
६. कण्हलेस्से णं भंते ! जीवे पावं कम्मं कि बंधी०, पुच्छा। गोयमा ! अत्थेगतिए बंधी, बंधति, बंधिस्सति; अत्यंगतिए बंधी, बंधति, न बंधिस्सति।
[६ प्र.] भगवन् ! क्या कृष्णलेश्यी जीव पहले पापकर्म बांधता था, बांधता है और बांधेगा? इत्यादि चारों प्रश्न।
[६ उ.] गौतम ! कोई (कृष्णलेश्यी जीव) पापकर्म बांधता था, बांधता है और बांधेगा; तथा कोई (कृष्णलेश्यी) जीव (पापकर्म) बांधता था, बांधता है, किन्तु आगे नहीं बांधेगा।
७. एवं जाव पम्हलेस्से। सव्वत्थ पढम-बितिया भंगा।
[७] इसी प्रकार (नीललेश्यी से लेकर) पद्मलेश्या वाले जीव तक समझना चाहिए। सर्वत्र प्रथम और द्वितीय भंग जानना।
८. सुक्कलेस्से जहा सलेस्से तहेव चउभंगो। [८] शुक्ललेश्यी के सम्बन्ध में सलेश्यजीव के समान चारों भंग कहने चाहिए। ९. अलेस्से णं भंते जीवे पावं कम्मं किं बंधी० पुच्छा।
गोयमा ! बंधी, न बंधति, न बंधिस्सति। __[९ प्र.] भगवन् ! अलेश्यी जीव ने क्या पापकर्म बांधा था, बांधता है और बांधेगा? इत्यादि पूर्ववत्
प्रश्न।
[९ उ.] गौतम ! उस जीव ने पूर्व में पापकर्म बांधा था, किन्तु वर्तमान में नहीं बांधता और बांधेगा भी नहीं।
विवेचन—स्पष्टीकरण—सलेश्य, कृष्णादिलेश्यायुक्त और अलेश्य इन तीनों प्रकार के जीवों के सम्बन्ध में त्रैकालिक पापकर्मबन्ध-सम्बन्धी वक्तव्यता इस द्वार में है।