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पच्चीसवाँ शतक : उद्देशक-७],
[५०७ झाणे चउब्विधे पन्नत्ते, तं जहा—अट्टे झाणे, रोद्दे झाणे, धम्मे झाणे, सुक्के झाणे। [२३७ प्र.] (भगवन् !) ध्यान कितने प्रकार का है ?
[२३७ उ.] (गौतम!) ध्यान चार प्रकार का कहा गया है, यथा—(१) आर्तध्यान, (२) रौद्रध्यान, (३) धर्मध्यान और (४) शुक्लध्यान।
. २३८. अट्टे झाणे चउविहे पण्णते, तं जहा—अमणुण्णसंपयोगसंपउत्ते तस्स विप्पयोगसतिसमन्नागते यावि भवति १, मणुण्णसंयोगसंपउत्ते तस्स अविप्पयोगसतिसमन्नागते यावि भवति २, आयंकसंपयोगसंपउत्ते तस्स विप्पयोगसतिसमन्नागते यावि भवति ३, परिझुसियकामभोगसंपउत्ते तस्स अविप्पयोगसतिसमन्नागते यावि भवति ४। ।
[२३८] आर्तध्यान चार प्रकार का कहा गया है। यथा—(१) अमनोज्ञ वस्तुओं की प्राप्ति होने पर उनके वियोग की चिन्ता करना, (२) मनोज्ञ वस्तुओं की प्राप्ति होने पर उनके अवियोग की चिन्ता करना, (३) आतंक (रोग-विपत्ति आदि कष्ट) प्राप्त होने पर उसके वियोग की चिन्ता करना और (४) परिसेवित या प्रीति-उत्पादक कायभोगों आदि की प्राप्ति होने पर उनके अवियोग की चिन्ता करना। ___ . २३९. अट्टस्स णं झाणस्स चत्तारि लक्खणा पन्नत्ता, तं जहा—कंदणया सोयणया तिप्पणया परिदेवणया।
_ [२३९] आर्तध्यान के चार लक्षण कहे हैं, यथा—(१) क्रन्दनता (रोना), (२) सोचनता (चिन्ता या शोक करना), (३) तेपनता (बार-बार अश्रुपात करना) और (४) परिदेवनता (विलाप करना)।
२४०. रोद्दे झाणे चउब्विधे पन्नत्ते, तं जहा–हिंसाणुबंधी, मोसाणुबंधी, तेयाणुबंधी, सारक्खणाणुबंधी।
[२४०] रौद्रध्यान चार प्रकार का कहा है, यथा—(१) हिंसानुबन्धी, (२) मृषानुबन्धी, (३) स्तेयानुबन्धी और (४) संरक्षणाऽनुबन्धी। ,
२४१. रोद्दस्स झाणस्स चत्तारि लक्खणा पन्नत्ता, तं जहा–उस्सन्नदोसे बहुदोसे अण्णाणदोसे आमरणंतदोसे। ___ [२४१] रौद्रध्यान के चार लक्षण कहे हैं, यथा—(१) ओसन्नदोष, (२) बहुलदोष, (३) अज्ञानदोष और (४) आमरणान्तदोष। __२४२. धम्मे झाणे चउव्विहे चउपडोयारे पन्नत्ते, तं जहा—आणाविजये, अवायविजये, विवागविजये, संठाणविजये।
[२४२] धर्मध्यान चार प्रकार का और चतुष्प्रत्यवतार कहा है, यथा—(१) आज्ञाविचय, (२) अपायविचय, (३) विपाकविचय और (४) संस्थानविचय। - २४३. धम्मस्स णं झाणस्स चत्तारि लक्खणा पन्नत्ता, तं जहा—आणारुयी निसग्गरुयी सुत्तरुयी ओगाढरुयी।