SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 625
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४९४] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र २०६. .से किं तं भत्त-पाणदव्वोमोदरिया ? भत्त-पाणदव्वोमोदरिया अट्ठकुक्कुडिअंडगप्पमाणमेत्ते कवले आहारं आहारेमाणस्स अप्पाहारे, दुवालस० जहा सत्तमसए पढमुद्देसए (स० ७ उ० १ सु० १९ ) जाव नो पकामरसभोती ति वत्तव्वं सिया । से तं भत्त - पाणदव्वोमोदरिया से तं दव्वोमोदरिया । [२०६ प्र.] भगवन् ! भक्तपानद्रव्य-अवमोदरिका कितने प्रकार का है ? [२०६ उ.] गौतम! (मुर्गी) के अण्डे के प्रमाण के आठ कवल आहार करना अल्पाहार अवमोदरिका हैं तथा बारह कवल प्रमाण आहार करना अवड्ढ - अवमोदरिका है, इत्यादि वर्णन सातवें शतक के प्रथम उद्देशक के (सू. १९ के) अनुसार यावत् वह प्रकाम - रसभोजी नहीं होता, ऐसा कहा जा सकता है: यहाँ तक जानना चाहिए। यह भक्तपान- अवमोदरिका का वर्णन हुआ। इस प्रकार द्रव्य - अवमोदरिका का वर्णन पूर्ण हुआ । २०७. से किं तं भावोमोदरिया ? भावोमोदरिया अणेगविहा पन्नत्ता, तं जहा — अप्पकोहे, जाव अप्पलोभे, अप्पसद्दे, अप्पझंझे, अप्पतुमतुमे, से तं भावोमोदरिया । से त्तं ओमोयरिया । • [ २०७ प्र.] भगवन् ! भाव- अवमोदरिका कितने प्रकार का है ? अल्पशब्द; [२०७ उ.] गौतम! भाव- अवमोदरिका अनेक प्रकार का कहा है। यथा— अल्पक्रोध, यावत् अल्पलोभ, ; अल्पझंझा (थोड़ी झंझट) और अल्प तुमन्तुमा। यह हुई भाव - अवमोदरिका । इस प्रकार अवमोदरिका का वर्णन पूर्ण हुआ। 1 विवेचनं— अवमोदरिका: लक्षण, प्रकार और स्वरूप — अवमोदरिका का दूसरा प्रचलित नाम ऊनोदरी है। भोजन, वस्त्र, उपकरण आदि का तथा क्रोधादि भावों का आवेश कम करना 'ऊनोदरी' तप हैं । इसके दो भेद हैं— द्रव्य - ऊनोदरी और भाव ऊनोदरी । भण्ड-उपकरण और आहारादि का जो परिमाण शास्त्रों में साधुवर्ग के लिए बताया है, उसमें कमी करना अर्थात् कम से कम उपकरणादि का उपयोग करना तथा सरस और पौष्टिक आहार का त्याग करना द्रव्य - ऊनोदरी है । द्रव्य - ऊनोदरी के मुख्य दो भेद हैं, यथाउपकरण-द्रव्य - ऊनोदरी और भक्त - पान- द्रव्य ऊनोदरी । उपकरण- द्रव्य - ऊनोदरी के तीन भेद हैं- एक पात्र, एकवस्त्र और जीर्ण उपधि । शास्त्र में चार पात्र तक रखने का विधान है। उससे कम रखना पात्र - ऊनोदरी है। इसी प्रकार शास्त्र में साधु को ७२ हाथ (चौरस) और साध्वी के लिए ९६ हाथ वस्त्र रखने का विधान है। इससे कम रखना वस्त्र- ऊनोदरी हैं। तीसरा भेद है— चियत्तोवगरणसातिज्जणया — जिसका संस्कृत रूपान्तर होता है— त्यक्तोपकरण-स्वदनता । त्यक्त अर्थात् संयतों के त्यागे हुए उपकरणों की स्वदनता अर्थात् परिभोग करना। यह अर्थ वृत्तिकार - सम्मत है। चूर्णिकार ने अर्थ किया है— साधु के पास जो वस्त्र हों, उन पर ममत्वभाव न रखे, दूसरा कोई ( सांभोगिक) साधु मांगे तो उसे उदारतापूर्वक दे दे। ये सभी ऊनोदरी के विशेषार्थ हैं, जो अवमोदरिका के अर्थ में घटित होते हैं । भक्तपानद्रव्य - ऊनोदरी के सामान्यतया ५ भेद हैं। यथा—— आठ कवल (कौर) - प्रमाण आहार करना अल्पाहार - ऊनोदरी है, बारह कौर - प्रमाण आहार करना अपार्द्ध ऊनोदरी हैं, सोलह कवल प्रमाण आहार करना अर्द्ध-ऊनोदरी है। चौवीस कवल- प्रमाण आहार करना 'प्राप्त ऊनोदरी' है। अर्थात् चार विभाग में से तीन विभाग आहार है और एक भाग ऊनोदरी है।
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy