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पच्चीसवाँ शतक : उद्देशक-७]
[४९३ पादपोपगमन अनशन में हाथ-पैर हिलाने का भी आगार नहीं है। साधक संथारा करके जिस स्थान में जिस रूप में एक बार लेट जाता है, फिर उसी स्थान में उसी स्थिति में लेटे रहना और अन्तिम समय तक निश्चल होकर मृत्यु का सद्भावना से वरण करना पादपोपगमन है।
तीनों या चारों प्रकार के आहार का त्याग करके जो संथारा किया जाता है, उसे भक्तप्रत्याख्यान अनशन कहते हैं, इसे 'भक्तिपरिज्ञा' भी कहते हैं।
. पादपोपगमन और भक्तप्रत्याख्यान के निर्दारिम और अनिर्दारिम, ऐसे दो-दो भेद होते हैं। जिस साधक का संथारा ग्राम आदि में रहते हुए हुआ हो और उसके मृतशरीर को ग्रामादि से बाहर ले जाया जाए, उसे 'निहारिम' कहते हैं और ग्रामादि से बाहर किसी पर्वत की गुफा आदि में जो संथारा (अनशन) किया जाए, उसे 'अनिर्हारिम' कहते हैं । पादपोपगमन अप्रतिकर्म होता है, उसमें संथारे की स्थिति में किसी दूसरे से किसी प्रकार की सेवा नहीं ली जाती। भक्तप्रत्याख्यान अनशन सप्रतिकर्म होता है। इसमें दूसरे मुनियों से सेवा कराई जा सकती है। अवमौदर्य तप के भेद-प्रभेदों की प्ररूपणा . २०३. से किं तं ओमोदरिया ?
ओमोदरिया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा—दव्वोमोदरिया य भावोमोदरिया य।
[२०३ प्र.] भगवन्! अवमोदरिका (ऊनोदरी) तप कितने प्रकार का है ? __[२०३ उ.] गौतम! अवमोदरिका तप दो प्रकार का कहा गया है। यथा—द्रव्य-अवमोदरिका और भाव-अवमोदरिका।
२०४. से किं तं दव्वोमोदरिया ? दव्वोमोदरिया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा उवगरणदव्वोमोदरिया य, भत्तपाणदव्वोमोयरिया य। [२०४ प्र.] भगवन् ! द्रव्य-अवमोदरिका कितने प्रकार का कहा है ?
[२०४ उ.] गौतम! द्रव्य-अवमोदरिका दो प्रकार का कहा है। यथा—उपकरणद्रव्य-अवमोदरिका और भक्तपानद्रव्य-अवमोदरिका।
२०५. से कं तं उवगरणदव्वोमोदरिया ?
उवगरणदव्वोमोयरिया—एगे वत्थे एगे पादे चियत्तोवगरणसातिजणया। से तं उवगरणदव्वोमोयरिया।
[२०५ प्र.] भगवन् ! उपकरणद्रव्य-अवमोदरिका कितने प्रकार का कहा है ?
[२०५ उ.] गौतम! उपकरणद्रव्य-अवमोदरिका (तीन प्रकार का है, यथा-) एक वस्त्र, एक पात्र और त्यक्तोपकरण-स्वदनता। यह हुआ उपकरणद्रव्य-अवमोदरिका।
१. भगवती. (हिन्दी-विवेचन) भा. ७.प. ३४९७-३४९८