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पच्चीसवाँ शतक : उद्देशक-७]
[४८१ इकतीसवाँ समुद्घातद्वार : पंचविध संयतों में समुद्घात की प्ररूपणा
१७१. सामाइयसंजयस्स णं भंते! कति समुग्घाया पन्नत्ता ? गोयमा! छ समुग्घाया पन्नत्ता, जहा कसायकुसीलस्स (उ० ६ सु० २१८)। [१७१ प्र.] भगवन् ! सामायिकसंयत के कितने समुद्घात कहे हैं?
[१७१ उ.] गौतम! छह समुद्घात कहे हैं, इत्यादि वर्णन (उ.६, सू. २१८ में उक्त) कषायकुशील के समान समझना।
१७२. एवं छेदोपवट्ठावणियस्स वि। [१७२] इसी प्रकार छेदोपस्थापनीयसंयत के विषय में भी जानना। १७३. परिहारविसुद्धियस्स जहा पुलागस्स ( उ० ६ सु० २१५)। [१७३] परिहारविशुद्धिकसंयत का कथन (उ. ६, सू. २१५ में उक्त) पुलाक के समान जानना। .१७४. सुहुमसंपरायस्स जहा नियंठस्स ( उ० ६ सु० २१९)। [१७४] सूक्ष्मसम्परायसंयत का कथन (उ.६, सू. २१९ में उक्त) निर्ग्रन्थ के समान जानना। १७५. अहक्खायस्स जहा सिणायस्स ( उ० ६ सु० २२०)। [दारं ३१]। [१७५] यथाख्यातसंयत की वक्तव्यता (उ.६, सू. २२० में उक्त) स्नातक के समान जानना।
___[इकतीसवाँ द्वार] बत्तीसवाँ क्षेत्रद्वार : पंचविध संयतों के अवगाहन क्षेत्र की प्ररूपणा
१७६. सामाइयसंजए णं भंते ! लोगस्स किं संखेजतिभागे होजा, असंखेजइभागे० पुच्छा। गोयमा! नो संखेजति० जहा पुलाए ( उ० ६ सु० २२१)। [१७६ प्र.] भगवन् ! सामायिकसंयत लोक के संख्यातवें भाग में होता है या असंख्यातवें भाग में होता
है?
[१७६ उ.] गौतम! वह लोक के संख्यातवें भाग में नहीं होता; इत्यादि कथन (उ. ६, सू. २२१ में कथित) पुलाक के समान जानना चाहिए।
१७७. एवं जाव सुहुमसंपराए। [१७७] इसी प्रकार का कथन सूक्ष्मसम्परायसंयत तक जानना चाहिए।
१७८. अहक्खायसंजते जहा सिणाए ( उ० ६ सु० २२३)।[दारं ३२]। _[१७८] यथाख्यातसंयत का कथन (उ. ६, सू. २२३ में उक्त) स्नातक के अनुसार जानना चाहिए। [बत्तीसवाँ द्वार]