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________________ ४८२] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र तेतीसवाँ स्पर्शनाद्वार : पंचविध संयतों की क्षेत्रस्पर्शना-प्ररूपणा १७९. सामाइयसंजए णं भंते ! लोगस्स किं संखेजतिभागं फुसति ? जहेव होज्जा तहेव फुसति वि। [ दारं ३३]। [१७९ प्र.] भगवन् ! सामायिकसंयत क्या लोक के संख्यातवें भाग का स्पर्श करता है ? इत्यादि प्रश्न। [१७९ उ.] गौतम! जिस प्रकार क्षेत्र-अवगाहना कही है, उसी प्रकार क्षेत्र-स्पर्शना भी जाननी चाहिए। [तेतीसवाँ द्वार] चौतीसवाँ भावद्वार : पंचविध संयतों में औपशमिकादि भावों की प्ररूपणा १८०. सामाइयसंजए णं भंते! कयरम्मि भावे होज्जा ? गोयमा! खओवसमिए भावे होज्जा। [१८० प्र.] भगवन् ! सामायिकसंयत किस भाव में होता है ? [१८० उ.] गौतम! वह क्षायोपशमिक भाव में होता है ? १८१. एवं जाव सुहुमसंपराए। [१८१] इसी प्रकार का कथन सूक्ष्मसम्परायसंयत तक जानना चाहिए। १८२. अहक्खायसंजए० पुच्छा। गोयमा! ओवसमिए वा खइए वा भावे होजा। [ दारं ३४]। [१८२ प्र.] भगवन् ! यथाख्यातसंयत किस भाव में होता है ? [१८२ उ.] गौतम! वह औपशमिकभाव या क्षायिक भाव में होता है। [चौतीसवाँ द्वार] विवेचन—अतिदेश-समुद्घातद्वार से लेकर भावद्वार तक (लोकस्पर्श, क्षेत्रद्वार, स्पर्शनाद्वार एवं भावद्वार आदि) के लिए छठे उद्देशक में उक्त पुलाक आदि का अतिदेश किया है, जिसे वहाँ से समझ लेना चाहिए। . पैंतीसवाँ परिमाण द्वार : पंचविध संयतों के एक समयवर्ती परिमाण की प्ररूपणा १८३. सामाइयसंजया णं भंते! एगसमएणं केवतिया होजा? गोयमा! पडिवज्जमाणए पडुच्च जहा कसायकुसीला (उ० ६ सु० २३२) तहेव निरवसेसं। [१८३ प्र. भगवन् ! सामायिकसंयत एक समय में कितने होते हैं ? । [१८३ उ.] गौतम! प्रतिपद्यमान की अपेक्षा समग्र कथन (उ. ६, सू. २३२ में उक्त) कषायकुशील के समान जानना चाहिए। १८४. छेदोवट्ठावणिया० पुच्छा। गोयमा! पडिवजमाणए पडुच्च सिय अस्थि, सिय नत्थि। जइ अत्थि जहन्नेणं एक्को वा दो वा
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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