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________________ ४६०] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [६८] इसी प्रकार छेदोपस्थापनीयसंयत के विषय में जानना। ६९. परिहारविसुद्धिए जहा पुलाए (उ०६ सु० ७९)। [६९] परिहारविशुद्धिकसंयत का कथन पुलाक के समान जानना चाहिए। ७०. सेसा जहा नियंठे (उ० ६ सु०८३)। [७०] शेष (सूक्ष्मसम्पराय और यथाख्यात संयत) के विषय में निर्ग्रन्थ के समान (उ.६, सू. ८३ के अनुसार) जानना। ७१. सामाइयसंजयस्स णं भंते ! देवलोगेसु उववजमाणस्स केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता ? गोयमा ! जहन्नेणं दो पलिओवमाई, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं। [७१ प्र.] भगवन् ! देवलोक में उत्पन्न होते हुए सामायिकसंयत की कितने काल की स्थिति कहो गई [७१ उ.] गौतम ! जघन्य दो पल्योपम और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की स्थिति कही है। ७२. एवं छेदोवट्ठावणिए वि। [७२] इसी प्रकार छेदोपस्थानीयसंयत की स्थिति भी समझनी चाहिए। ७३. परिहारविसुद्धियस्स पुच्छा। गोयमा ! जहन्नेणं दो पलिओवमाइं, उक्कोसेणं अट्ठारस सागरोवमाई। [७३ प्र.] भगवन् ! देवलोक में उत्पन्न होते हुए परिहारविशुद्धिकसंयत की स्थिति कितने काल की होती है ? [७३ उ.] गौतम ! उसकी स्थिति जघन्य दो पल्योपम और उत्कृष्ट अठारह सागरोपम की होती है । ७४. सेसाणं जहा नियंठस्स (उ०६ सु०८८)। [दारं १३] । . [७४] शेष दो संयतों (सूक्ष्मसम्पराय और यथाख्यात संयत की स्थिति (उ.६, सू. ८८ में कथित) निर्ग्रन्थ के समान जानना चाहिए। [तेरहवाँ द्वार] विवेचन-गति, उत्पत्ति और स्थिति सामायिक और छेदोपस्थापनीय संयत देवगति में वैमानिक देवों में जघन्य देवों में जघन्य सौधर्मकल्प में और उत्कृष्ट अनुत्तरविमान में उत्पन्न होते हैं तथा इन दोनों संयतों की स्थिति जघन्य दो पल्योपम और उत्कृष्ट तेतीस सांगरोपम की होती है। परिहारविशुद्धिसंयत देवगति में, वैमानिक देवों में जघन्य सौधर्मकल्प में और उत्कृष्ट सहस्रार देवलोक में उत्पन्न होता है। सूक्ष्मसम्पराय देवगति में, वैमानिक देवों में अजघन्यानुत्कृष्ट अनुत्तरविमान में उत्पन्न होते हैं, जिनकी स्थिति अजघन्यानुत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की होती है । यथाख्यातसंयत देवगति में वैमानिक देवों में अजघन्यानुकृष्ट अनुत्तरविमानों में उत्पन्न होते हैं, कोई-कोई सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होते हैं। १. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मू. पा. टि.) भा. २. पृ. १०४७-१०४८
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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