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________________ पच्चीसवां शतक : उद्देशक-७] [४५९ गोयमा ! देवगतिं गच्छति। [६२-१ प्र.] भगवन् ! सामायिकसंयत कालधर्म (मृत्यु) प्राप्त कर किस गति में जाता है ? [६२-१ उ.] गौतम ! वह देवगति में जाता है। [२] देवगतिं गच्छमाणे किं भवणवासीसु उववजेजा जाव वेमाणिएसु उववजेज्जा ? गोयमा ! नो भवणवासीसु उववज्जेजा जहा कसायकुसीले (उ० ६ सु० ७६)। [६२-२] भगवन् ! वह देवगति में जाता हुआ (सामायिकसंयत) भवनवासी, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकों में से किन देवों में उत्पन्न होता है ? [६२-२] गौतम ! वह (उ.६, सू. ७६ में कथित) कषायकुशील के समान भवनगति में उत्पन्न नहीं होता, इत्यादि सब कहना। ६३. एवं छेदोवट्ठावणिए वि। .६३] इसी प्रकार छेदोपस्थापनीयसंयत के विषय में भी समझना चाहिए। . ६४. परिहारविसुद्धिए जहा पुलाए (उ० ६ सु० ७३) [६४] परिहारविशुद्धिकसंयत की गति (उ. ६, सू. ७६ में कथित) पुलाक के समान जानना चाहिए। ६५. सुहुमसंपराए जहा नियंठे ( उ० ६ सु० ७६)। [६५] सूक्ष्मसम्परायसंयत की गति (उ.६, सू. ७७ में कथित) निर्ग्रन्थ के समान जानना चाहिए। ६६. अहक्खाते० पुच्छा। गोयमा ! एवं अहक्खायसंजए वि जाव अजहन्नमणुक्कोसेणं अणुत्तरविमाणेसु उववजेजा, अत्थेगइए सिज्झति जाव अंतं करेति।। [६६ प्र.] भगवन् ! यथाख्यातसंयत कालधर्म प्राप्त कर किस गति में जाता है ? । [६६ उ.] गौतम ! यथाख्यातसंयत भी पूर्वकथनानुसार अजघन्यानुत्कृष्ट अनुत्तरविमान में उत्पन्न होता है और कोई सिद्ध हो जाता है, यावत् सर्व दुःखों का अन्त करता है। ६७. सामाइयसंजए णं भंते ! देवलोगेसु उववजमाणं किं इंदत्ताए उववजति० पुच्छा। गोयमा ! अविराहणं पडुच्च एवं जहा कसायकुसीले (उ०६ सु०८२)। [६७ प्र.] भगवन् ! देवलोकों में उत्पन्न होता हुआ सामायिकसंयत क्या इन्द्ररूप से उत्पन्न होता है ? इत्यादि प्रश्न। [६७ उ.] गौतम ! अविराधना की अपेक्षा (उ.६, सू. ८२ में कथित) कषायकुशील के समान जानना। ६८. एवं छेदोवट्ठावणिए वि।
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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