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पच्चीसवाँ शतक : उद्देशक-६]
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निर्ग्रन्थपन के उत्कृष्ट तीन भव होते हैं। उनमें से प्रथम भव में दो आकर्ष और दूसरे भव में दो और तीसरे भव में एक आकर्ष, यों पांच आकर्ष होते हैं । क्षपक निर्ग्रन्थपन का आकर्ष करके सिद्ध होता है। इस प्रकार अनेक भवों में निर्ग्रन्थपन के पांच आकर्ष होते हैं। स्नातक तो उसी भव में सिद्ध हो जाते हैं। इसलिए उनके अनेक भव और आकर्ष नहीं होते।
कठिन शब्दार्थ-आगरिसा—आकर्ष—चारित्रप्राप्ति। सयग्गसो—सैकड़ों, शत-पृथक्त्व। सहस्सग्गसो-सहस्रों, सहस्रपृथक्त्व। उनतीसवाँ कालद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों में स्थितिकाल-निरूपण
१९७. पुलाए णं भंते ! कालतो केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं। [१९७ प्र.] भगवन् ! पुलाकत्व काल की अपेक्षा कितने काल तक रहता है ? [१९७ उ.] गौतम ! वह जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त तक रहता है। १९८. बउसे० पुच्छा। गोयमा ! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी। [१९८ प्र.] भगवन् ! बकुशत्व कितने काल तक रहता है ? [१९८ उ.] गौतम ! वह जघन्य एक समय और उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटिवर्ष तक रहता है। १९९. एवं पडिसेवणाकुसीले वि, कसायकुसीले वि। [१९९] इसी प्रकार प्रतिसेवनाकुशील और कषायकुशील के विषय में भी समझना चाहिए। २००. नियंठे० पुच्छा। गोयमा ! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहत्तं। [२०० प्र.] भगवन् ! निर्ग्रन्थत्व कितने काल तक रहता है ? [२०० उ.] गौतम ! वह जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त तक रहता है। २०१. सिणाए० पुच्छा। गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी। [२०१ प्र.] भगवन् ! स्नातकत्व कितने काल तक रहता है ? [२०१ उ.] गौतम ! वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटिवर्ष तक रहता है। २०२. पुलाया णं भंते ! कालओ केवचिरं होंति ?
१. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ९०५-९०६ २. भगवतीसूत्र (हिन्दी विवेचन) भाग ७, पृ. ३४१५-१६