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[ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र गोयमा ! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं। [२०२ प्र.] भगवन् ! पुलाक (बहुत) कितने काल तक रहते हैं ? [२०२ उ.] गौतम ! वे जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त तक रहते हैं। २०३. बउसा णं भंते ! • पुच्छा। गोयमा ! सव्वद्धं। [२०३ प्र.] भगवन् ! बकुश (बहुत) कितने काल तक रहते हैं ? [२०३ उ.] गौतम ! वे सर्वाद्धा—सर्वकाल रहते हैं। २०४. एवं जाव कसायकुसीला। [२०४] इसी प्रकार कषायकुशीलों तक जानना चाहिए। . २०५. नियंठा जहा पुलागा। [२०५] निर्ग्रन्थों का कथन पुलाकों के समान जानना चाहिए। २०६. सिणाया जहा बउसां। [ दारं २१]। [२०६] स्नातकों की वक्तव्यता बकुशों के समान है। [उनतीसवाँ द्वार] :
विवेचन-पुलाकादि भाव कितने काल तक?-पुलाकत्व को प्राप्त मुनि एक अन्तर्मुहूर्त पूर्ण न हो, तब तक न तो पुलाकत्व से मरते हैं और न गिरते हैं । अर्थात्-कषायकुशीलपन में अन्तर्मुहूर्त से पहले जाते. नहीं और पुलाकपन में मरते ही नहीं हैं। इसलिए उनका काल अन्तर्मुहूर्त का ही होता है।
बकुशपन की प्राप्ति होने के साथ ही तुरंत मरण सम्भव होने से जघन्य एक समय तक बकुशपन रहता है। यदि पूर्वकोटि वर्ष की आयु वाला सातिरेक आठ वर्ष की वय में संयम स्वीकार करे तो उसकी अपेक्षा उत्कृष्टकाल देशोन पूर्वकोटि वर्ष होता है। निर्ग्रन्थ का जघन्यकाल एक समय है, क्योंकि उपशान्तमोहगुणस्थानवर्ती निर्ग्रन्थ प्रथम समय में भी मरण को प्राप्त हो सकते हैं। निर्ग्रन्थ का उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त का है क्योंकि निर्ग्रन्थपन इतने काल का ही रहता है। स्नातक का जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त इसलिए है कि आयु के अन्तिम अन्तर्मुहूर्त में केवलज्ञान उत्पन्न होने में जघन्य अन्तर्मुहूर्त के बाद वे मोक्ष में जा सकते हैं। उत्कृष्ट काल देशोन पूर्वकोटिवर्ष है।
काल-परिमाण : एकत्व-बहुत्व सम्बन्धी-पुलाक आदि का एकवचन और बहुवचन सम्बन्धी काल-परिमाण इन सूत्रों में बतया गया है। एक पुलाक अपने अन्तर्मुहूर्त के अन्तिम समय में वर्तमान है, उसी समय में दूसरा मुनि पुलाकपन को प्राप्त करे तब दोनों पुलाकों का एक समय में सद्भाव होता। इस प्रकार 'अनेक पुलाकों (दो पुलाक हो तो भी वे भी अनेक कहलाते हैं) में जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्ट काल
अन्तर्मुहूर्त होता है, क्योंकि पुलाक एक सयम में उत्कृष्ट सहस्रपृथक्त्व (दो हजार से नौ हजार तक) हो सकते हैं। बहुत हों तो भी उनका काल अन्तर्मुहूर्त होता है। किन्तु एक पुलाक की स्थिति के अन्तर्मुहूर्त से अनेक पुलाकों की स्थिति का अन्तर्मुहूर्त बड़ा होता है। बकुशादि का स्थितिकाल तो सर्वकाल होता है, क्योंकि वे