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पच्चीसवाँ शतक : उद्देशक-६]
[४२५ [१४६] इसी प्रकार स्नातक के विषय में भी जानना चाहिए। १४७.[१] पुलाए णं भंते ! केवतियं कालं वड्डमाणपरिणामे होजा? गोयमा ! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसणं अंतोमुहत्तं। [१४७-१ प्र.] भगवन् ! पुलाक कितने काल तक वर्द्धमानपरिणाम में होता है ? [१४७-१ उ.] गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त तक वर्द्धमानपरिणामी होता है। [२] केवतियं कालं हायमाणपरिणामे होजा ? गोयमा ! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं। [१४७-२ प्र.] भगवन् ! वह कितने काल तक हीयमानपरिणामी होता है ? [२४७-२ उ.] गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त तक होता है। [३] केवइयं कालं अवट्ठिय परिणामे होजा? गोयमा ! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं सत्त समया। [१४७-३ प्र.] भगवन् ! वह कितने काल तक अवस्थित परिणामी होता है ? [१४७-३ उ.] गौतम ! वह जघन्य एक समय और उत्कृष्ट सात समय तक होता है। १४८. एवं जाव कसायकुसीले। [१४८] इसी प्रकार कषायकुशील तक पूर्ववत् जानना चाहिए। १४९. [१] नियंठे णं भंते ! केवतियं कालं वड्ढमाणपरिणामे होजा? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। [१४९-१ प्र.] भगवन् ! निर्ग्रन्थ कितने काल तक वर्द्धमानपरिणामी होता है ? [१४९-१ उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त तक (वर्द्धमान-परिणामी होता
[२] केवतियं कालं अयट्ठियपरिणामे होजा? गोयमा ! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं। [१४९-२ प्र.] भगवन् ! निर्ग्रन्थ कितने काल तक अवस्थितपरिणामी होता है ? [१४९-२ उ.] गौतम ! वह जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त तक (अवस्थित-परिणामी रहता
१५०.[१] सिणाए णं भंते ! केवतियं कालं वड्ढमाणपरिणामे होज्जा ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं ।