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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [१४२ उ.] गौतम ! वह एक परम शुक्ललेश्या में होता है। [उन्नीसवाँ द्वार]
विवेचन—पंचविध निर्ग्रन्थों में लेश्या का रहस्य–पुलाक, बकुश और प्रतिसेवनाकुशील, ये तीनों तीन विशुद्ध लेश्याओं में होते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि भावलेश्या की अपेक्षा ये तीनों तीन प्रशस्त लेश्याओं (तेजो, पदम् और शुक्ल) में होते हैं।
कषायकुशील के विषय में मूलपाठ में छह लेश्याएँ बताई हैं । वृत्तिकार का मन्तव्य इस सम्बन्ध में यह है कि इनमें कृष्णादि तीन लेश्याएँ तो मात्र द्रव्यलेश्याएँ हैं, किन्तु इनमें द्रव्यलेश्या भी छह और भावलेश्या भी छह समझनी चाहिए। इनमें द्रव्य और भावरूप छहों लेश्याएँ किस प्रकार घटित होती हैं, इसका स्पष्टीकरण भगवती, प्रथम शतक के प्रथम और द्वितीय उद्देशक के विवेचन में किया गया है।
स्नातक में एकमात्र परम शुक्लध्यान बताया गया है, उसका आशय यह है कि शुक्लध्यान के तीसरे भेद के समय ही एक परम शुक्ललेश्या होती है, दूसरे समय में तो उसमें शुक्ललेश्या ही होती है, किन्तु वह शुक्ललेश्या दूसरे जीवों की शुक्ललेश्या की अपेक्षा परम शुक्ललेश्या होती है। वीसवाँ परिणामद्वार : वर्धमानादि परिणामों की प्ररूपणा
१४३. पुलाए णं भंते ! किं वड्डमाणपरिणामे होज्जा, हायमाणपरिणामे होजा, अवट्ठियपरिणामे होजा?
गोयमा ! वड्डमाणपरिणामे वा होजा, हायमाणपरिणामे वा होजा, अवट्ठियपरिणामे वा होजा। ।
[१४३ प्र.] भगवन् ! पुलाक, वर्द्धमानपरिणामी होता है, हीनमानपरिणामी होता है अथवा अवस्थितपरिणामी होता है ?
[१४३ उ.] वह वर्द्धमानपरिणामी भी होता है, हीयमाणपरिणामी भी और अवस्थितपरिणामी भी होता
है
।
१४४. एवं जाव कसायकुसीले। [१४४] इसी प्रकार यावत् कषायकुशील तक जानना चाहिए। १४५. नियंठे पुच्छा। गोयमा ! वड्डमाणपरिणामे होज्जा, नो हायमाणपरिणामे होजा, अवट्ठियपरिणामे वा होजा।
[१४५ प्र.] भगवन् ! निर्ग्रन्थ किस परिणाम वाला होता है ? इत्यादि पृच्छा। _[१४५ उ.] गौतम ! वह वर्द्धमान और अवस्थित परिणाम वाला होता है, किन्तु हीयमानपरिणामी नहीं होता। ।
१४६. एवं सिणाए वि।
___१. भगवती. अ. वृत्ति. पत्र ९०२
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