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________________ पच्चीसवाँ शतक : उद्देशक - ६ ] १३५. एवं बउसस्स वि । [१३५] इसी प्रकार बकुश के विषय में भी कहना चाहिए। १३६. एवं पडिसेवणाकुसीले वि। [१३६] प्रतिसेवनाकुशील के विषय में भी यही वक्तव्यता जाननी चाहिए । १३७. कसायकुसीले० पुच्छा । गोयमा ! सलेस्से होज्जा, नो अलेस्से होज्जा । [१३७ प्र.] भगवन् ! कषायकुशील सलेश्य होता है, अथवा अलेश्य होता है ? [१३७ उ.] गौतम ! वह सलेश्य होता है, अलेश्य नहीं होता है। १३८. जति सलेस्से होज्जा से णं भंते! कतिसु लेसासु होज्जा ? गोयमा ! छसु लेसासु होज्जा, तं जहा — कण्हलेसाए जाव सुक्कलेसाए । [१३८ प्र.] भगवन् ! यदि वह सलेश्य होता है, तो कितनी लेश्याओं में होता है ? [ १३८ उ.] गौतम ! वह छहों लेश्याओं में होता है, यथा— १३९. नियंठे णं भंते ! ० पुच्छा । गोयमा ! सलेस्से होज्जा, नो अलेस्से होज्जा । [१३९ प्र.] भगवन् ! निर्ग्रन्थ सलेश्य होता है या अलेश्य होता है ? [१३९ उ.] गौतम ! वह सलेश्य होता है, अलेश्य नहीं होता है । ! १४०. जदि सलेस्से होज्जा से णं भंते ! कतिसु लेसासु होज्जा ? गोयमा ! एक्काए सुक्कलेसाए होज्जा । [१४० प्र.] भगवन् ! यदि निर्ग्रन्थ सलेश्य होता है, तो उसमें कितनी लेश्याएं पाई जाती हैं ? [१४० उ.] गौतम ! निर्ग्रन्थ एकमात्र शुक्ललेश्या में होता है । १४१. सिणाए० पुच्छा । गोयमा ! सलेस्से वा होज्जा, अलेस्से वा होज्जा । [१४१ प्र.] भगवन् ! स्नातक सलेश्य होता है अथवा अलेश्य होता है ? [१४१ उ.] गौतम ! वह सलेश्य भी होता हैं, और अलेश्य भी होता है । १४२. जति सलेस्से होज्जा से णं भंते! कतिसु लेसासु होज्जा ? [ ४२३ - कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या में । गोयमा ! एगाए परमसुक्काए लेसाए होज्जा । [ दारं १९] [१४२ प्र.] भगवन् ! यदि स्नातक सलेश्य होता है, तो वह कितनी लेश्याओं में होता है ?
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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