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________________ ४०४] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र ५ रम्यक्वर्ष, ५ देवकुरु और ५ उत्तरकुरु, ये कुल तीस क्षेत्र अकर्मभूमिक हैं। इनमें असि, मसि आदि व्यापार नहीं होता। इन क्षेत्रों में १० प्रकार के कल्पवृक्षों से जीवननिर्वाह होता है । आजीविका के लिए कृषि आदि कर्म न करने से 'और कल्पवृक्षों द्वारा भोग प्राप्त होने से इन क्षेत्रों को भोगभूमि भी कहते हैं । यहाँ के मनुष्यों को 'भोगभूमिज' तथा जोड़े से जन्म लेने के कारण यौगलिक (जुगलिया ) कहते हैं । जन्म, सद्भाव और संहरण — जन्म और सद्भाव ( चारित्रभाव के अस्तित्व ) की अपेक्षा पुलाक कर्मभूमि में होते हैं, अर्थात् पुलाक की उत्पत्ति कर्मभूमि में ही होती है और चारित्र अंगीकार करके वह यहीं विचरता है। वह अकर्मभूमि में उत्पन्न नहीं होता, क्योंकि वहाँ पैदा हुए मनुष्य को चारित्र (संयम) की प्राप्ति नहीं होती। अतएव वहाँ उसका सद्भाव ( चारित्र का अस्तित्व) भी नहीं होता । संहरण (देवादि द्वारा एक स्थान से उठा कर दूसरे स्थान पर ले जाने) की अपेक्षा भी वह अकर्मभूमि में नहीं होता, क्योंकि पुलाकलब्धि वाले का देवादि कोई भी संहरण नहीं कर सकते। बकुश अकर्मभूमि में जन्म से नहीं होता, न ही स्वकृतविहार से होता है, परकृत विहार (संहरण) की अपेक्षा वह कर्मभूमि में भी होता है, अकर्मभूमि में भी होता है। बारहवाँ कालद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों में अवसर्पिणी- उत्सर्पिणीकालादि- प्ररूपणा ६८. [१] पुलाएं णं भंते ! किं ओसप्पिणिकाले होज्जा, उस्सप्पिणिकाले होज्जा, नोओसप्पिणिनोउस्सप्पिणिकाले होज्जा ? गोयमा ! ओसप्पिणिकाले वा होज्जा, उस्सप्पिणिकाले वा होज्जा, नोओसप्पिणिनोउस्सप्पिणिकाले वा होज्जा । [६८-१ प्र.] भगवन् ! पुलाक अवसर्पिणीकाल में होता है, उत्सर्पिणीकाल में होता है, अथवा नो अवसर्पिणी- नोउत्सर्पिणीकाल में होता है ? [६८-१ उ.] गौतम ! पुलाक अवसर्पिणीकाल में भी होता है, उत्सर्पिणीकाल में भी होता है तथा नो अवसर्पिणी- नोउत्सर्पिणीकाल में भी होता है । [ २ ] जदि ओसप्पिणिकाले होज्जा किं सुसमसुसमाकालें होज्जा, सुसमाकाले होज्जा, सुसमदुस्समाकाले होज्जा, दुस्समसुसमाकाले होज्जा, दुस्समाकाले होज्जा, दुस्समदुस्समाकाले होज्जा ? गोयमा ! जम्मणं दडुच्च नो सुसमसुसमाकाले होज्जा, नो सुसमाकाले होज्जा, सुसमदुस्समाकाले वा होज्जा, दुस्समसुसमाकाले वा होज्जा, नो दुस्समाकाले होज्जा, नो दुस्समदुस्समाकाले होजा । संतिभावं पडुच्च नो सुसमसुसमाकाले होज्जा, नो सुसमाकाले होज्जा, सुसमदुस्समाकाले वा होज्जा, दुस्समसुसमाकाले वा होज्जा, दुस्समाकाले वा होजा, नो दुस्समदुस्समाकाले होज्जा । [६८-२ प्र.] यदि पुलाक अवसर्पिणीकाल में होता है, तो क्या वह सुषम - सुषमाकाल में होता है अथवा सुषमाकाल में, सुषम - दुःषमाकाल में, दु:षम - सुषमाकाल में, दु:षमकाल में होता है अथवा दु:षमदुःषमाकाल में होता है ? १. भगवती. (हिन्दी - विवेचन) भा. ७, पृ. ३३६९ २. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ८९६
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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