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पच्चीसवाँ शतक : उद्देशक - ६ ]
ओरालिय-वेउव्विय-आहारग-तेयग-कम्मएसु होज्जा ।
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[६३ प्र.] भगवन् ! कषायकुशील कितने शरीरों में होता है ?
[६३ उ.] गौतम ! वह तीन, चार या पांच शरीरों में होता है। यदि तीन शरीरों में हो तो औदारिक, तेजस और कार्मण शरीर में होता है, चार शरीरों में हो तो औदारिक, वैक्रिय, तैजस और कार्मण शरीर में होता है और पांच शरीरों में हो तो औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस और कार्मण शरीर में होता है।
६४. नियंठे सिणाते य जहा पुलाओ । [ दारं १० ]
[६४] निर्ग्रन्थ और स्नातक का शरीरविषयक कथन पुलाक के समान जानना चाहिए। [ दसवाँ द्वार ] |
विवेचन — शरीर : किसमें कितने ? – प्रस्तुत शरीरद्वार में, पुलाक में तथा निर्ग्रन्थ और स्नातक में औदारिकादि तीन शरीर, बकुश तथा प्रतिसेवनाकुशील में तीन या चार शरीर (वैक्रिय अधिक) तथा कषायकुशील में तीन, चार या पांच (आहारकशरीर अधिक) शरीर होते हैं । "
ग्यारहवाँ क्षेत्रद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों में कर्मभूमि- अकर्मभूमि- प्ररूपणा
६५. पुलाए णं भंते! किं कम्मभूमीए होज्जा, अकम्मभूमीए होज्जा ?
गोयमा ! जम्मण-संतिभावं पडुच्च कम्मभूमीए होज्जा, नो अकम्मभूमीए होजा ।
[६५ प्र.] भगवन् ! पुलाक कर्मभूमि में होता है या अकर्मभूमि में होता है ?
[६५ उ.] गौतम !` जन्म और सद्भाव (अस्तित्व) की अपेक्षा कर्मभूमि में होता है, अकर्मभूमि में नहीं होता है ।
६६. बउसे णं० पुच्छाः।
गोयमा ! जम्मण-संतिभावं पडुच्च कम्मभूमीए होज्जा, नो अकम्मभूमीए होज्जा | साहरणं पडुच्च कम्मभूमीए वा होज्जा, अकम्मभूमीए वा होज्जा ।
[६६ प्र.] बकुश के विषय में पृच्छा ?
[६६ उ.] गौतम ! जन्म और सद्भाव से कर्मभूमि में होता है, अकर्मभूमि में नहीं होता है। संहरण की अपेक्षा कर्मभूमि में भी और अकर्मभूमि में भी होता है।
६७. एवं जाव सिणाए । [ दारं ११]
[६७] इसी प्रकार (बकुश से लेकर) स्नातक तक कहना चाहिए। [ ग्यारहवाँ द्वार ]
विवेचन—–जहाँ असि, मसि और कृषि द्वारा आजीविका की जाती हो तथा जहाँ तप, संयम आदि आध्यात्मिक अनुष्ठान होते हैं, उसे 'कर्मभूमि' कहते हैं, तथा जहाँ असि, मसि, कृषि आदि द्वारा जीविकोपार्जन न किया जाता हो और जहाँ तप, संयमादि आध्यात्मिक साधना न की जाती हो, उसे अकर्मभूमि कहते हैं। पांच भरत, पांच ऐरवत और पांच महाविदेह, ये १५ क्षेत्र कर्मभूमिक हैं और ५ हैमवत, ५ हिरण्यवत, ५ हरिवर्ष,
१. वियाहपण्णत्तिसुत्तं भा. २, पृ. १०२४