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________________ ४०२] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र भावलिंग पडुच्च नियमं सलिंगे होज्जा। [५८ प्र.] भगवन् ! पुलाक स्वलिंग में होता है, अन्यलिंग में या गृहीलिंग में होता है ? [५८ उ.] गौतम ! द्रव्यलिंग की अपेक्षा वह स्वलिंग में, अन्यलिंग में या गृहीलिंग में होता है, किन्तु भावलिंग की अपेक्षा नियम से स्वलिंग में होता है। ५९. एवं जाव सिणाए।[द्वारं ९]। [५९] इसी प्रकार (बकुश से लेकर) स्नातक तक कहना चाहिए। [नौवाँ द्वार]. विवेचन–लिंग : प्रकार और लक्षण-लिंग दो प्रकार के होते हैं—द्रव्यलिंग और भावलिंग। सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र भावलिंग है। यह भावलिंग आर्हत्धर्म (केवलिप्ररूपित धर्म) का पालन करने वालों में ही होता है । इस कारण वह (इस अपेक्षा से) स्वलिंग कहलाता है । द्रव्यलिंग के दो भेद हैं-स्वलिंग और अन्य (पर) लिंग। राजोहरणादि रखना इत्यादि द्रव्य से स्वलिंग है। परलिंग के दो भेद हैं—कुतीर्थिकलिंग और गृहस्थलिंग। पुलाक में तीनों प्रकार के लिंग पाए जा सकते हैं, क्योंकि चारित्र का परिणाम किसी एक ही द्रव्यलिंग की अपेक्षा नहीं रखता।' । दसवाँ शरीरद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों में शरीर-भेद-प्ररूपणा ६०. पुलाए णं भंते ! कतिसु सरीरेसु होज्जा? गोयमा ! तिसु ओरालिय-तेया-कम्मएसु होजा। [६० प्र.] भगवन् ! पुलाक कितने शरीरों में होता है ? [६९ उ.] गौतम ! वह औदारिक, तैजस और कार्मण, इन तीन शरीरों में होता है। ६१. बउसे णं भंते ! ० पुच्छा। गोयमा ! तिसु वा चतुसु वा होजा। तिसु होमाणे तिसु ओरालिय-तेया-कम्मएसु होज्जा, चउसु होमाणे चउसु ओरालिय-वेउव्विय-तेया-कम्मएसु होजा। [६१ प्र.] भगवन् ! बकुश कितने शरीरों में होता है ? [६१ उ.] गौतम ! वह तीन या चार शरीरों में होता है । यदि तीन शरीरों में हो तो औदारिक, तैजस और कार्मण शरीर में होता है, और चार शरीरों में हो तो औदारिक, वैक्रिय, तैजस और कार्मण शरीरों में होता है। ६२. एवं पडिसेवणाकुसीले वि। [६२] इसी प्रकार प्रतिसेवनाकुशील के विषय में समझना चाहिए। [६३] कसायकुसीले० पुच्छा। गोयमा ! तिसु वा चतुसु वा पंचसु वा होजा। तिसु होमाणे तिसु ओरालिय-तेया-कम्मएसु होजा, चउसु होमाणे चउसु ओरालिय-वेउव्विय-तेया-कम्मएसु होज्जा, पंचसु होमाणे पंचसु १. श्रीमद्भगवतीसूत्रम् खण्ड ४ पृ. २४५ (गुजराती अनुवाद सहित)
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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