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________________ ४००] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र का अध्ययन करता है। ४८. बउसे० पुच्छा। गोयमा ! जहन्नेणं अट्ठ पवयणमायाओ, उक्कोसेणं दस पुव्वाई अहिजेजा। [४८ प्र.] भगवन् ! बकुश कितने श्रुत पढ़ता है ? [४८ उ.] गौतम ! वह जघन्यतः अष्ट प्रवचनमाता का और उत्कृष्टतः दस पूर्व तक का अध्ययन करता है। ४९. एवं पडिसेवणाकुसीले वि। [४९] इसी प्रकार प्रतिसेवनाकुशील के विषय में समझना चाहिए। ५०. कसायकुसीले० पुच्छा। गोयमा ! जहन्नेणं अट्ठ पवयणमायाओ, उक्कोसेणं चोद्दस पुव्वाइं अहिजेजा। [५० प्र.] भगवन् ! कषायकुशील कितने श्रुत का अध्ययन करता है ? [५० उ.] गौतम ! वह जघन्यतः अष्ट प्रवचनमाता का और उत्कृष्ट चौदह पूर्वो का अध्ययन करता है। ५१. एवं नियंठे वि। [५१] इसी प्रकार निर्ग्रन्थ के विषय में भी जानना चाहिए। ५२. सिणाये० पुच्छा। गोयमा ! सुयवतिरित्ते होजा।[ द्वारं ७]। [५२ प्र.] भगवन् ! स्नातक कितने श्रुत का अध्ययन करता है ? [५२ उ.] गौतम ! स्नातक श्रुतव्यतिरिक्त होते हैं। [सप्तम द्वार] । विवेचन-किसमें कितने ज्ञान, कितना श्रुताध्ययन ? -पुलाक, बकुश और प्रतिसेवनाकुशील में दो या तीन ज्ञान तथा कषायकुशील और निर्ग्रन्थ में उत्कृष्ट चार ज्ञान तक पाए जाते हैं। स्नातक में एक केवलज्ञान ही होता है। श्रुत भी ज्ञान विशेषतः श्रुतज्ञान के अन्तर्गत होने से इसी (सप्तम) द्वार के अन्तर्गत उसकी चर्चा की गई है। स्नातक में परिपूर्ण ज्ञान—केवलज्ञान होने से वे श्रुतव्यतिरिक्त कहलाते हैं। वे श्रुतज्ञानी नहीं होते। प्रवचनमाता का अध्ययन : क्या और क्यों? - पांच समिति और तीन गुप्ति ये आठ प्रवचनमाताएँ कहलाती हैं। इनके पालन के रूप में चारित्र होता है। इसलिए चारित्र का पालन करने वाले को कम से कम अष्ट प्रवचनमाता का अध्ययन करना तथा ज्ञान प्राप्त करना अत्यावश्यक है। क्योंकि चारित्र ज्ञानपूर्वक होता है, इसलिए बकुश को कम से कम (जघन्यतः) इतना श्रुतज्ञान तो अवश्य होना चाहिए, शेष स्पष्ट है। १. भगवती. (हिन्दी-विवेचन) भा.७, पृ. ३३६२ २.. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ८९४
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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