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पच्चीसवाँ शतक : उद्देशक-६]
[ ३९९ गोयमा ! दोसु वा तिसु होजा। दोसु होमाणे दोसु आभिणिबोहियनाण-सुयनाणेसु होजा, तिसु होमाणे तिसे आभिनिबोहियनाण-सुयनाण-ओहिनाणेसु होज्जा।
[४१ प्र.] भगवन् ! पुलाक में कितने ज्ञान होते हैं ?
[४१ उ.] गौतम ! पुलाक में दो या तीन ज्ञान होते हैं। यदि दो ज्ञान हों तो आभिनिबोधिकज्ञान और श्रुतज्ञान होते हैं। यदि तीन ज्ञान हों तो आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान होते हैं।
४२. एवं बउसे वि। [४२] इसी प्रकार बकुश के विषय में जानना चाहिए। ४३. एवं पडिसेवाणाकुसीले वि। [४३] प्रतिसेवनाकुशील के विषय में भी यही वक्तव्यता जाननी चाहिए। ४४. कसायकुसीले णं० पुच्छा।
गोयमा ! दोसु वा तिसु वा चउसु वा होजा।दोसु होमाणे दोसु आभिनिबोहियनाण-सुयनाणेसु होजा। तिसु होमाणे तिसु आभिनिबोहियनाण-सुयनाण-ओहिनाणेसु अहवा तिसु आभिनिबोहियनाण-मणपजवनाणेसु होज्जा। चउसु होमाणे चउसु आभिनिबोहियनाण-सुयनाण-ओहिनाणमणपज्जवनाणेसु होज्जा।
[४४ प्र.] भगवन् ! कषायकुशील में कितने ज्ञान होते हैं ? _[४४ उ.] गौतम ! कषायकुशील में दो, तीन या चार ज्ञान होते हैं। यदि दो ज्ञान हों तो आभिनिबोधिकज्ञान और श्रुतज्ञान होते हैं, तीन ज्ञान हों तो आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान होते हैं; अथवा आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान और मन:पर्यवज्ञान होते हैं। यदि चार ज्ञान हों तो आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान और मनःपर्यवज्ञान होते हैं।
४५. एवं नियंठे वि। [४५] इसी प्रकार निर्ग्रन्थ के विषय में जानना चाहिए। ४६. सिणाए णं० पुच्छा। गोयमा ! एगम्मि केवलनाणे होज्जा। [४६ प्र.] भगवन् ! स्नातक में कितने ज्ञान होते हैं ? [४६ उ.] गौतम ! स्नातक में एकमात्र केवलज्ञान ही होता है।
४५. पुलाए णं भंते ! केवतियं सुयं अहिजेजा ? गोयमा ! जहन्नेणं नवमस्स पुव्वस्स ततियं आयारवत्थु, उक्कोसेणं नव पुव्वाइं अहिज्जेज्जा।
[४७ प्र.] भगवन् ! पुलाक कितने श्रुत का अध्ययन करता है ? [४७ उ.] गौतम ! वह जघन्यतः नौवें पूर्व की तृतीय आचारवस्तु तक का और उत्कृष्टत: पूर्ण नौ पूर्वो