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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र यह है कि सकम्प और निष्कम्प परमाणुओं के द्रव्यार्थ और प्रदेशार्थ, इन दो पक्षों के बदले द्रव्यार्थ-अप्रदेशार्थ, यह एक ही पद बनता है। इस प्रकार द्रव्यार्थ-प्रदेशार्थ इस उभयपक्ष के बीस ही पद घटित होते हैं।' धर्मास्तिकायादि के मध्यप्रदेशों की संख्या का निरूपण
२४६. कति णं भंते ! धम्मत्थिकायस्स मञ्झपएसा पन्नत्ता ? गोयमा ! अट्ठ धम्मत्थिकायस्स मज्झपएसा पन्नत्ता। [२४६ प्र.] भगवन् ! धर्मास्तिकाय के मध्य-प्रदेशी कितने कहे हैं ? [२४६ उ.] गौतम ! धर्मास्तिकाय के मध्य-प्रदेश आठ कहे हैं। २४७. कति णं भंते ! अधम्मत्थिकायस्स मज्झपएसा पन्नत्ता ? एवं चेव। [२४७ प्र.] भगवन् ! अधर्मास्तिकाय के मध्य-प्रदेश कितने कहे हैं ? [२४७ उ.] गौतम ! इसी प्रकार (पूर्ववत्) आठ कहे हैं। २४८. कति णं भंते ! आगासत्थिकायस्स मज्झपएसा पन्नत्ता ? एवं चेव। [२४८ प्र.] भगवन् ! आकाशास्तिकाय के मध्य-प्रदेश कितने कहे हैं ? [२४८ उ.] गौतम ! पूर्ववत् आठ कहे हैं। २४९. कति णं भंते ! जीवत्थिकायस्स मज्झपएसा पन्नत्ता ? गोयमा ! अट्ठ जीवत्थिकायस्स मज्झपएसा पन्नत्ता। [२४९ प्र.] भगवन् ! जीवास्तिकाय के मध्य-प्रदेश कितने कहे हैं ? [२४९ उ.] गौतम ! जीवास्तिकाय के मध्य-प्रदेश आठ कहे हैं।
विवेचन-मध्य-प्रदेश आठ ही क्यों और कहाँ-कहाँ-चूर्णिकार के मतानुसार धर्मास्तिकाय के आठ मध्य (बीच के) प्रदेश आठ रुचक-प्रदेशवर्ती होते हैं । यद्यपि धर्मास्तिकाय आदि तीनों लोक-प्रमाण होने से उनका मध्य-भाग रुचक-प्रदेशों से असंख्यात-योजन दूर रत्नप्रभा-पृथ्वी के अवकाशान्तर में अवस्थित है, ठीक रुचकवर्ती नहीं है, तथापि रुचकप्रदेश दिशाओं और विदिशाओं के उत्पत्ति स्थान होने से उनकी धर्मास्तिकाय आदि के मध्यरूप से विवक्षा हो, ऐसा सम्भव है।
प्रत्येक जीव के आठ रुचक होते हैं। वे उस जीव के शरीर की सर्व-अवगाहना के ठीक मध्यवर्ती भाग में होते हैं। इसलिए उन्हें मध्यप्रदेश कहते हैं।'
१. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ८८७ २. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ८८७