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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र २२१. निरेए कालओ केवचिरं होति ? जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं असंखेनं कालं। [२२१ प्र.] भगवन् ! (द्वि-प्रदेशी स्कन्ध) निष्कम्पक कितने काल तक रहता है ? [२२१ उ.] गौतम ! वह जघन्य एक समय और उत्कृष्ट असंख्यात काल तक निष्कम्पक रहता है। २२२. एवं जाव अणंतपदेसिए। . [२२२] इसी प्रकार यावत् अनन्त-प्रदेशी स्कन्ध तक (के कम्पनादि-काल के विषय में जानना।) २२३. परमाणुपोग्गला णं भंते ! सव्वेया कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! सव्वद्ध। [२२३ प्र.] भगवन् ! (अनेक) परमाणु-पुद्गल सर्वकम्पक कितने काल तक रहते हैं ? [२२३ उ.] गौतम ! (वे) सदा काल (सर्वकम्पक रहते हैं।) २२४. निरेया कालओ केवचिरं ? सव्वद्धं। [२२४ प्र.] भगवन् ! (अनेक परमाणु-पुद्गल) निष्कम्पक कितने काल तक रहते हैं ? [२२४ उ.] गौतम ! (वे) सदा काल (निष्कम्पक रहते हैं।) २२५. दुप्पदेसिया णं भंते ! खंधा देसेया कालओ केवचिरं होति? सव्वद्धं। [२२५ प्र.] भगवन् ! द्विप्रदेशी स्कन्ध देशकम्पक कितने काल तक रहते हैं ? [२२५ उ.] गौतम ! (वे) सर्वकाल (देशकम्पक रहते हैं।) २२६. सव्वेया कालओ केवचिरं? सव्वद्धं। [२२६ प्र.] भगवन् ! वे कितने काल तक सर्वकम्पक रहते हैं ? [२२६ उ.] गौतम ! (वे) सदा काल (सर्वकम्पक रहते हैं।) २२७. निरेया कालतो केवचिरं ? सव्वद्धं। [२२७ प्र.] भगवन् ! (द्विप्रदेशी स्कन्ध) निष्कम्पक कितने काल तक रहते हैं ? [२२७ उ.] सदा काल। २२८. एवं जाव अणंतपदेसिया।