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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र प्रदेशी और अनन्त-प्रदेशी स्कन्धों की सकम्पता और अकम्पता को लेकर द्रव्यार्थ से अल्पबहुत्व के आठ पद होते हैं । इसी प्रकार प्रदेशार्थ से भी आठ पद होते हैं । किन्तु द्रव्यार्थ-प्रदेशार्थ से उभयपक्ष में चौदह पद होते हैं, क्योंकि सकम्प और निष्कम्प परमाणु-पुद्गलों के द्रव्यार्थता और प्रदेशार्थता इन दो पदों के स्थान में 'द्रव्यार्थअप्रदेशार्थता' यह एक ही पद कहना चाहिए। इसलिए यहाँ १६ बोलों के बदले १४ बोल ही होते हैं।
द्रव्यार्थता सूत्र में निष्कम्प संख्यात-प्रदेशी स्कन्ध, निष्कम्प परमाणुओं से संख्यात-गुण कहे गए हैं और प्रदेशार्थ सूत्र में वे परमाणुओं से असंख्यातगुणे कहे गए हैं क्योंकि निष्कम्प परमाणुओं से निष्कम्प संख्यातप्रदेशी स्कन्ध द्रव्यार्थ से संख्यातगुणे होते हैं। उनमें से बहुत से स्कन्धों में उत्कृष्ट संख्या वाले प्रदेश होने से वे निष्कम्प परमाणुओं से प्रदेशार्थ से असंख्यातगुणे होते हैं, क्योंकि उत्कृष्ट संख्या में एक संख्या की वृद्धि होने पर वे असंख्यात हो जाते हैं। परमाणु से अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक देशकम्प-सर्वकम्प-निष्कम्पता की प्ररूपणा
२११. परमाणुपोग्गले णं भंते ! किं देसेए, सव्वेए, निरेए ? गोयमा ! नो देसेए, सिय सव्वेए, सिय निरेये।
[२११ प्र.] भगवन् ! परमाणु पुद्गल देशकम्पक (कुछ अंश में कम्पित होने वाला) है, सर्वकम्पक (पूर्णतया कम्पित होने वाला) है या निष्कम्पक है ?
[२११ उ.] गौतम ! परमाणु-पुद्गल देशकम्पक नहीं है, वह कदाचित् सर्वकम्पक है, कदाचित् निष्कम्पक है।
२१२. दुपदेसिए णं भंते ! खंधे० पुच्छा। गोयमा ! सिय देसेए, सिय सव्वेए, सिय निरेये। [२१२ प्र.] भगवन् ! द्विप्रदेशी स्कन्ध देशकम्पक है, सर्वकम्पक है या निष्कम्पक ? [२१२ उ.] गौतम ! वह कदाचित् देशकम्पक, कदाचित् सर्वकम्पक और कदाचित् निष्कम्पक होता है। २१३. एवं जाव अणंतपदेसिए। [२१३] इसी प्रकार यावत् अनन्त-प्रदेशी स्कन्ध तक जानना चाहिए। २१४. परमाणुपोग्गला णं भंते ! किं देसेया, सव्वेया, निरेया ? गोयमा ! नो देसेया, सव्वेया वि, निरेया वि। [२१४ प्र.] भगवन् ! (बहुत) परमाणु-पुद्गल देशकम्पक हैं, सर्वकम्पक हैं या निष्कम्पक हैं ? [२१४ उ.] गौतम ! वे देशकम्पक नहीं हैं, किन्तु सर्वकम्पक हैं और निष्कम्पक भी हैं।
२१५. दुपदेसिया णं भंते ! खंधा० पुच्छा। १. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ८८७ ३. वही, पत्र ८८७