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________________ ३३६] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र शाश्वत और सर्व-काल-नियत, अनन्त समयात्मक होने से 'जीव' (सामान्य) कृतयुग्म-समय की स्थिति वाला है। नैरयिक से लेकर वैमानिक तक की स्थिति भिन्न-भिन्न होने से किसी समय कृतयुग्म-समय की स्थिति वाला होता है तो किसी समय यावत् कल्योज-समय की स्थिति वाला होता है। सामान्यादेश और विधानादेश से जीवों की स्थिति अनादि-अनन्त काल की होने से वे कृतयुग्म-समय की स्थिति वाले हैं। सभी नैरयिकादि जीवों की स्थिति के समयों को एकत्रित किया जाए और उनमें से चार-चार का अपहार किया जाए तो सभी नैरयिक सामान्यादेश से कृतयुग्म-समय यावत् कल्योज-समय की स्थिति वाले होते हैं और विशेषादेश से एक समय में कृतयुग्मादि चारों प्रकार के हैं।' सामान्य जीव एवं चौवीस दण्डकों में वर्णादि पर्यायापेक्षया कृतयुग्मादि प्ररूपणा ५५. जीवे णं भंते ! कालवण्णपज्जवेहिं किं कडजुम्मे० पुच्छा। गोयमा ! जीवपएसे पडुच्च नो कडजुम्मे जाव नो कलियोगे; सरीरपएसे पडुच्च सिय कडजुम्मे जाव सिय कलियोगे। [५५ प्र.] भगवन् ! जीव काले वर्ण के पर्यायों की अपेक्षा कृतयुग्म है ? इत्यादि पृच्छा। __ [५५ उ.] गौतम ! जीव (आत्म-) प्रदेशों की अपेक्षा न तो कृतयुग्म है और यावत् न कल्योज है, किन्तु शरीरप्रदेशों की अपेक्षा कदाचित् कृतयुग्म है, यावत् कदाचित् कल्योज है। ५६. एवं जाव वेमाणिए। [५६] (यहाँ से लेकर) यावत् वैमानिक पर्यन्त इसी प्रकार कहना चाहिए। ५७. सिद्धो ण चेव पुच्छिज्जति। [५७] यहाँ सिद्ध के विषय में प्रश्न नहीं करना चाहिए, (क्योंकि वे अरूपी हैं)। ५८. जीवा णं भंते ! कालवण्णपज्जवेहिं० पुच्छा। गोयमा ! जीवपएसे पडुच्च ओघादेसेण वि विहाणादेसेण विनो कडजुम्मा जाव नो कलियोगा; सरीरपएसे पडुच्च ओघादेसेणं सिय कडजुम्मा जाव सिय कलियोगा, विहाणादेसेणं कडजुम्मा वि जाव कलियोगा वि। [५८ प्र.] भगवन् ! (अनेक) जीव काले वर्ण के पर्यायों की अपेक्षा कृतयुग्म हैं ? इत्यादि प्रश्न। [५८ उ.] गौतम ! जीव-(आत्म-) प्रदेशों की अपेक्षा ओघादेश से भी और विधानादेश से भी न तो कृतयुग्म हैं यावत् न कल्योज हैं। शरीरप्रदेशों की अपेक्षा ओघादेश से कदाचित् कृतयुग्म हैं, यावत् कदाचित् कल्योज हैं, विधानादेश से वे कृतयुग्म भी हैं, यावत् कल्योज भी हैं। ५९. एवं जाव वेमाणिया। १. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ८७५-८७६
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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