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पच्चीसवां शतक : उद्देशक-४]
[३३५ अथवा कल्योज-समय की स्थिति वाला नहीं है।
४८. नेरइए णं भंते ! ० पुच्छा । गोयमा ! सिय कडजुम्मसमयद्वितीये जाव सिय कलियोगसमयद्वितीए।
[४८ प्र.] भगवन् ! (एक) नैरयिक कृतयुग्म-समय की स्थिति वाला है ? इत्यादि प्रश्न। __ [४८ उ.] गौतम ! वह कदाचित् कृतयुग्म-समय की स्थिति वाला है, यावत् कदाचित् कल्योज-समय की स्थिति वाला है।
४९. एवं जाव वेमाणिए। [४९] इसी प्रकार (असुरकुमार से लेकर) यावत् वैमानिक तक जानना चाहिए। ५०. सिद्धे जहा जीवे। [५०] सिद्ध का कथन (औधिक) जीव के समान है। ५१. जीवा णं भंते !० पुच्छा।
गोयमा ! ओघादेसेण वि विहाणादेसेण वि कडजुम्मसमयद्वितीया, नो तेयोग०, नो दावर०, नो कलिओग०।
[५१ प्र.] भगवन् ! (अनेक) जीव कृतयुग्म-समय की स्थिति वाले हैं ? इत्यादि प्रश्न।
[५१ उ.] गौतम ! वे ओघादेश से तथा विधानादेश से भी कृतयुग्म-समय की स्थिति वाले हैं, किन्तु त्र्योज-समय, द्वापरयुग्म-समय अथवा कल्योज-समय की स्थिति वाले नहीं हैं। .
५२. नेरइया णं० पुच्छा।
गोयमा ! ओघादेसेणं सिय कडजुम्मसमयद्वितीया जाव सिय कलियोगसमयद्वितीया; विहाणादेसेणं कडजुम्मसमयद्वितीया वि जाव कलियोगसमयट्ठितीया वि।
[५२ प्र.] भगवन् ! (अनेक) नैरयिक कृतयुग्म-समय की स्थिति वाले हैं ? इत्यादि प्रश्न। __ [५२ उ.] गौतम ! ओघादेश से वे कदाचित् कृतयुग्म-समय की स्थिति वाले हैं, यावत् कदाचित् कल्योज-समय की स्थिति वाले हैं। विधानादेश से कृतयुग्म-समय की स्थिति वाले हैं, यावत् कल्योज-समय की स्थिति वाले हैं।
५३. एवं जाव वेमाणिया। [५३] (असुरकुमारों से लेकर) वैमानिकों तक इसी प्रकार जानना चाहिए। ५४. सिद्धा जहा जीवा। [५४] सिद्धों का कथन सामान्य जीवों के समान है। विवेचन—जीव-स्थिति : कृतयुग्मादि समय रूपों में सामान्य जीव की स्थिति सर्व-काल में