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________________ पच्चीसवाँ शतक : उद्देशक-४] [३३७ [५९] (यहाँ से लेकर) वैमानिकों तक इसी प्रकार का कथन समझना चाहिए। ६०. एवं नीलवण्णपज्जवेहि वि दंडओ भाणियव्वो एगत्त-पुहत्तेणं। ___ [६०] इसी प्रकार एकवचन और बहुवचन नीले वर्ण के पर्यायों की अपेक्षा भी वक्तव्यता कहनी चाहिए। ६१. एवं जाव लुक्खफासपज्जवेहिं। [६१] इसी प्रकार यावत् (शेष वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श के) रूक्ष स्पर्श के पर्यायों की अपेक्षा भी पूर्ववत् कथन करना चाहिए। विवेचन—वर्णादि पर्यायों की अपेक्षा कृतयुग्मादि निरूपण-जीव-प्रदेश अमूर्त-अरूपी होते हैं, इसलिए उनमें कालादि वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श के पर्याय नहीं होते, परन्तु शरीर-विशिष्ट जीव का ग्रहण होने से शरीर के वर्णादि की अपेक्षा सामान्य एवं विशिष्ट जीव में कृतयुग्मादि चारों प्रकार की राशियों का व्यवहार हो सकता है। यहाँ सिद्ध-जीव के विषय में कृतयुग्मादि प्रश्न का निषेध किया गया है, उसका कारण यह है कि सिद्ध अमूर्त-अरूपी हैं। अतएव उनमें वर्णादि चारों होते ही नहीं हैं।' जीव, चौवीस दण्डकों और सिद्धों में ज्ञान-अज्ञान-दर्शनपर्यायों की अपेक्षा एकत्वबहुत्वदृष्टि से कृतयुग्मादि प्ररूपणा ६२. जीवे णं भंते ! आभिणिबोहियनाणपज्जवेहिं किं कडजुम्मे० पुच्छा। गोयमा ! सिय कडजुम्मे जाव सिय कलियोगे। [६२ प्र.] भगवन् ! (एक) जीव आभिनिबोधिकज्ञान के पर्यायों की अपेक्षा कृतयुग्म है ? इत्यादि प्रश्न। [६२ उ.] गौतम ! वह कदाचित् कृतयुग्म है, यावत् कदाचित् कल्योज है। ६३. एवं एगिदियवजं जाव वेमाणिए। [६३] इसी प्रकार एकेन्द्रिय को छोड़कर वैमानिक पर्यन्त कहना चाहिए। ६४. जीवा णं भंते ! आभिणिबोहियणाणपजवेहिं० पुच्छा। गोयमा ! ओघादेसेणं सिय कडजुम्मा जाव सिय कलियोगा, विहाणादेसेणं कडजुम्मा वि जाव कलियोगा वि। [६४ प्र.] भगवन् ! (बहुत) जीव आभिनिबोधिकज्ञान के पर्यायों की अपेक्षा कृतयुग्म हैं ? इत्यादि प्रश्न। [६४ उ.] गौतम ! ओघादेश से वे कदाचित् कृतयुग्म हैं, यावत् कदाचित् कल्योज हैं। विधानादेश से १. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ८७६
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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