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चउत्थो उद्देसओ : जुम्म
चतुर्थ उद्देशक : युग्म-प्ररूपणा
चार युग्म और उनके अस्तित्व का कारण
१.[१] कति णं भंते ! जुम्मा पन्नत्ता? गोयमा ! चत्तारि जुम्मा पन्नत्ता, तंजहा—कडजुम्मे जाव कलियोए। [१-१ प्र.] भगवन् ! युग्म कितने कहे हैं ? [१-१ उ.] गौतम ! युग्म चार प्रकार के कहे हैं, यथा—कृतयुग्म यावत् कल्योज। [२] से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ–चत्तारि जुम्मा पन्नत्ता तंजहा कडजुम्मे० ?
जहा अट्ठारसमसते चउत्थे उद्देसए ( स० १८ उ० ४ सु० [२]) तहेव जाव से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ०।
[१-२ प्र.] भगवन् ! ऐसा क्यों कहा जाता है कि युग्म चार हैं, कृतयुग्म (से लेकर) यावत् कल्योज।
[१-२ उ.] गौतम ! अठारहवें शतक के चतुर्थ उद्देशक (के सू. ४-२) में कहे अनुसार यहाँ जानना, यावत् इसीलिए हे गौतम ! इस प्रकार कहा है।
_ विवेचन—कृतयुग्म आदि का स्वरूप-राशि अथवा संख्या को युग्म कहते हैं। जिस राशि में से चार-चार का अपहार करने पर अन्त में चार बाकी रहें, उस राशि को 'कृतयुग्म' कहते हैं, तीन शेष रहें, उसे 'त्र्योज'; दो शेष रहें, उसे 'द्वापरयुग्म' और एक शेष रहे उसे 'कल्योज' कहते हैं। चौवीस दण्डकों और सिद्धों में युग्मभेद-निरूपण
२.[१] नेरतियाणं भंते ! कति जुम्मा०? गोयमा ! चत्तारि जुम्मा पन्नत्ता, तंजहा—कडजुम्मे जाव कलियोए। [२-१ प्र.] भगवन् ! नैरयिकों में कितने युग्म कहे गये हैं ? [२-१ उ.] गौतम ! उनमें चार युग्म कहे हैं । यथा-कृतयुग्म यावत् कल्योज। [२] से केणडेणं भंते ! एवं वुच्चई—नेरतियाणं चत्तारि जुम्मा पन्नत्ता, तंजहा—कडजुम्मे० ?
अट्ठो तहेव। १. श्रीमद्भगवतीसूत्र, खण्ड ४, पृ. २१५