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________________ पच्चीसवां शतक : उद्देशक-३] [३२५ तस-तेउ-पुढवि-जल-वाउ-काय-अकाय-वणस्सइ-सकाया। थोव असंख्यातगुणाहिय तिण्णि उ दो णंतगुण अहिया॥ अर्थात्—सबसे अल्प त्रसकायिक हैं, उनसे तेजस्कायिक जीव असंख्यातगुणे हैं, उनसे पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, वायुकायिक, उत्तरोत्तर विशेषाधिक हैं, उनसे अकायिक अनन्तगुणे हैं, उनसे वनस्पतिकायिक अनन्तगुणे हैं और उनसे सकायिक विशेषाधिक हैं।' जीव, पुद्गल आदि का अल्पबहुत्व अन्त में जीव, पुद्गल, अद्धा-समय, सर्वद्रव्य, सर्वप्रदेश और सर्व-पर्यायों का अल्पबहुत्व बताया गया है। वह संक्षेप में इस प्रकार है - जीवा पोग्गल-समया, दव्व-पएसा य पजवा चेव। थोवा णंताणंता विसेसा अहिया दुवेऽणंता॥ अर्थात्—सबसे थोड़े जीव हैं, उनसे पुद्गल अनन्तगुणे हैं, उनसे अद्धा समय अनन्तगुणे हैं, उससे सर्वद्रव्य विशेषाधिक है, उनसे सर्वप्रदेश अनन्तगुणे हैं और उनसे सर्व-पर्याय अनन्तगुणे हैं। आयुकर्म के बंधक—अबंधक आदि का अल्पबहुत्व—इसके पश्चात् सबसे अन्त में बन्धक, अबन्धक, पर्याप्त-अपर्याप्त, सुप्त-जाग्रत, समवहत-(समुद्घात को प्राप्त)-असमवहत, सातावेदकअसातावेदक, इन्द्रियोपयोगयुक्त (इन्द्रियों के उपयोग वाले)–नो इन्द्रियोपयोगयुक्त, साकारोपयुक्तअनाकारोपयुक्त, इन जीवों के अल्पबहुत्व का कथन किया गया है। इसके लिए भी प्रज्ञापनासूत्र के तृतीय पद का अतिदेश किया गया है। ॥ पच्चीसवाँ शतक : तृतीय उद्देशक सम्पूर्ण॥ *** १. भगवती. अ. वृत्ति पत्र ८६९ २. वही, पत्र ८६९ ३. वही, पत्र ८७०
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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