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________________ ३२४] अबन्धक जीव विशेषाधिक हैं' तक कहना चाहिए। विवेचन-पांच के अल्पबहुत्व का अतिदेश- नारक, तिर्यञ्च, मनुष्य, देव और सिद्ध, इन पांचों के अल्पबहुत्व के लिए यहाँ प्रज्ञापनासूत्र के तीसरे पद का अतिदेश किया गया है। प्रज्ञापनाकथित वक्तव्यता का संक्षिप्त सार निम्नोक्त गाथा में बताया गया है नर-नेरइया देवा सिद्धा, तिरिया कमेण इय होंती ॥ थोवमसंख-असंखा, अनंतगुणिया अनंतगुणा ॥ अर्थात्—सबसे थोड़े मनुष्य हैं। उनसे नैरयिक असंख्यातगुणे हैं, उनसे देव असंख्यातगुणे हैं, और उनसे सिद्ध अनन्तगुणे हैं, तथा उनसे तिर्यञ्च अनन्तगुणे हैं । [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र आठ गतियाँ और उनका अल्पबहुत्व - आठ गतियों के नाम एक गाथा के अनुसार इस प्रकार हैं— नरकगतिस्तथातिर्यक् नरामरगतयः । स्त्री-पुरुष भेदाद्वेधा सिद्धिगतिश्चेत्यष्टौ ॥ अर्थात्—(१) नरकगति, (२) पुरुष - तिर्यञ्च, (३) स्त्री - तिर्यञ्च (तिर्यञ्चनी), (४) पुरुष-मनुष्यगति, (५) स्त्री-मनुष्यगति, (६) पुरुष - देवगति, (७) स्त्री - देवगति और (८) सिद्धगति । इन आठों गतियों का अल्पबहुत्व इस प्रकार है—सबसे अल्प मनुष्यिनी (स्त्रियाँ) हैं, उनसे मनुष्य असंख्यातगुणे हैं, उनसे नैरयिक असंख्यातगुणे हैं, उनसे तिर्यञ्चनी असंख्यातगुणे हैं, उनसे देव असंख्यातगुणे हैं, उनसे देवियाँ संख्यातगुणी हैं, उनसे सिद्ध अनन्तगुणे हैं, और उनसे तिर्यञ्च अनन्तगुणे हैं। सइन्द्रिय आदि का अल्पबहुत्व — सइन्द्रिय, एकेन्द्रिय आदि का अल्पबहुत्व एक गाथा में बताया गया है। इसके लिए भी प्रज्ञापनासूत्र के तीसरे पद का अतिदेश किया है। उसका सारांश इस प्रकार है— पण - चउ-ति- दुय-अणिंदिय- एगिंदि -सइंदिया कमा हुति । थोवा तिणि य अहिया, दो णंतगुणा विसेसाहिया ॥ अर्थात्—सबसे अल्प पंचेन्द्रिय जीव हैं, उनसे चतुरिन्द्रिय विशेषाधिक हैं उनसे त्रीन्द्रिय विशेषाधिक हैं, उनसे द्वीन्द्रिय विशेषाधिक हैं, उनसे अनिन्द्रिय अनन्तगुणे हैं उनसे एकेन्द्रिय अन्तनगुणे हैं, और उनसे सइन्द्रिय विशेषाधिक हैं। सकायिक जीवों का अल्पबहुत्व - सकायिक जीवों का पहु प्रज्ञापनासूत्र के अतिदेश पूर्वक बताया गया है। उसका सारांश इस प्रकार है १. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ८६९ २. भगवती. अ. वृत्ति पत्र ८६९ ३. वही. पत्र ८६९
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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